छ प्रकारनां द्रव्यो सर्वज्ञे जोयेलां छे, ते त्रण प्रकारनां लक्षणोथी ओळखाय छे.
अभिन्न होवा छतां तेमां लक्षण–लक्ष्यपणुं छे.
भावनी उत्पत्ति ते उत्पाद, ते ज क्षणे पूर्वना भावनो विनाश ते व्यय; अने
स्वजातिपणे वस्तुनुं सळंग टकवुं ते ध्रुवता. आवा उत्पाद–व्यय–ध्रुव ते द्रव्यनुं स्वरूप छे.
पर्यायनो उत्पाद ते जीवनो भाव छे, तेना वडे जीवद्रव्यनुं अस्तित्व लक्षित थाय छे.
जीवनी पर्यायनो प्रवाह ज्ञानमय ज होय, एकपर्याय ज्ञानरूप होय ने बीजी पर्याय
जडरूप होय एम न बने; पुद्गलनी बधी पर्यायो जडरूप होय. आम पदार्थना उत्पाद–
व्यय–ध्रुव पोतानी स्वजातने छोडता नथी; जड–चेतन एकबीजामां भळी जता नथी
आवो सत् स्वभाव छे. जीव त्रणे काळे जीव रहे; अजीव त्रणेकाळे अजीव रहे. जीव के
अजीव ते सौ पोतपोताना उत्पाद–व्यय–ध्रुवमां ज वर्ते छे. ते द्रव्य पोताना उत्पाद–
व्यय–ध्रुवथी अभिन्न छे. वस्तुमां एक समयमां उत्पाद–व्यय–ध्रुवनुं एकसाथे होवुं ए
वात सर्वज्ञ सिवाय कोईना मतमां होय नहीं. उत्पाद–व्यय–ध्रुव तो द्रव्यनुं लक्षण छे, ते
बीजा वडे अपातुं नथी. विश्वनी वस्तुओ ज स्वयंसिद्ध एवा स्वभाववाळी छे.