Atmadharma magazine - Ank 315
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९६ : ७ :
पोताना उत्पाद–व्यय–ध्रुवथी द्रव्य जुदुं नथी. स्वभावथी ज उत्पाद–व्यय–ध्रुव
त्रणे एक साथे वर्ते छे, एवा उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप द्रव्य छे.
पोताना गुण–पर्यायोथी द्रव्य जुदुं नथी; गुण–पर्यायोनो आधार ते ज द्रव्य छे.
पोतानी सत्ताथी द्रव्य जुदुं नथी.
आ रीते दरेक द्रव्य पोतानां स्वलक्षण वडे ज लक्षित थाय छे, परथी तेने
भिन्नपणुं छे.
सर्वज्ञदेवे जगतना दरेक द्रव्यनुं आवुं स्वरूप जोयुं छे; ते सर्वज्ञ सिवाय बीजा
कोई मतमां यथार्थ होय नहीं. छ द्रव्योमां काळ सिवायनां पांच अस्तिकाय छे आम जे
छ प्रकारनां द्रव्यो सर्वज्ञे जोयेलां छे, ते त्रण प्रकारनां लक्षणोथी ओळखाय छे.
(१) अनेकांत स्वरूप वस्तुमां अनंत धर्मो छे तेमांथी ‘सत्ता’ पण एक धर्म छे,
ते द्रव्यनुं स्वरूप छे; ते लक्षणवडे द्रव्यनुं अस्तित्व ओळखाय छे. सत्ता अने द्रव्य
अभिन्न होवा छतां तेमां लक्षण–लक्ष्यपणुं छे.
(२) द्रव्यनुं बीजुं लक्षण छे–उत्पाद–व्यय–धौव्य. जीव ते जीव, ने अजीव ते
अजीव. एम पोतानी जात छोड्या वगर जे क्रमरूप भावोनो प्रवाह चाले छे तेमां नवा
भावनी उत्पत्ति ते उत्पाद, ते ज क्षणे पूर्वना भावनो विनाश ते व्यय; अने
स्वजातिपणे वस्तुनुं सळंग टकवुं ते ध्रुवता. आवा उत्पाद–व्यय–ध्रुव ते द्रव्यनुं स्वरूप छे.
भाषानो उत्पाद थयो तेना वडे पुद्गलद्रव्य लक्षित थाय छे, ते पुद्गलनी
स्वजात छे. भाषानुं प्रगटवुं ते पुद्गलना अस्तित्वमां छे, जीवमां नहीं. अने ज्ञाननी
पर्यायनो उत्पाद ते जीवनो भाव छे, तेना वडे जीवद्रव्यनुं अस्तित्व लक्षित थाय छे.
जीवनी पर्यायनो प्रवाह ज्ञानमय ज होय, एकपर्याय ज्ञानरूप होय ने बीजी पर्याय
जडरूप होय एम न बने; पुद्गलनी बधी पर्यायो जडरूप होय. आम पदार्थना उत्पाद–
व्यय–ध्रुव पोतानी स्वजातने छोडता नथी; जड–चेतन एकबीजामां भळी जता नथी
आवो सत् स्वभाव छे. जीव त्रणे काळे जीव रहे; अजीव त्रणेकाळे अजीव रहे. जीव के
अजीव ते सौ पोतपोताना उत्पाद–व्यय–ध्रुवमां ज वर्ते छे. ते द्रव्य पोताना उत्पाद–
व्यय–ध्रुवथी अभिन्न छे. वस्तुमां एक समयमां उत्पाद–व्यय–ध्रुवनुं एकसाथे होवुं ए
वात सर्वज्ञ सिवाय कोईना मतमां होय नहीं. उत्पाद–व्यय–ध्रुव तो द्रव्यनुं लक्षण छे, ते
बीजा वडे अपातुं नथी. विश्वनी वस्तुओ ज स्वयंसिद्ध एवा स्वभाववाळी छे.