Atmadharma magazine - Ank 315
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : : पोष : २४९६
दुःख परथी ऊपज्युं एम जेणे मान्युं तेणे पोतानुं सत्पणुं पोताथी न मान्युं,
एटले पोतानी उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप स्वाधीन सत्ताने न जाणी.
अज्ञानदशा टळीने स्वभावना आश्रये ज्ञानदशा उपजी, अथवा श्रुतज्ञान
पलटीने केवळज्ञान पर्याय उपजी, ते उत्पाद कोनी सत्तामां थयो?–के जीवनी सत्तामां
थयो. वज्रशरीर वगेरेनां कारणे ते उत्पाद नथी थयो.
आ प्रमाणे सर्वत्र पोतानुं सत्पणुं पोताथी जाणे अने परनुं सत्पणुं परथी
जाणे तो सत्ना ज्ञानवडे पराश्रितबुद्धि मटे, भेदज्ञान थाय ने मोक्षमार्ग प्रगटे.
सर्वज्ञदेवे जोयेला विश्वना सत्स्वरूपनुं आ कथन छे. जगतना सत् द्रव्यो त्रण
प्रकारे ओळखाय छे, अर्थात् त्रण प्रकारनां लक्षणथी ते ओळखाय छे.–
(१) सत् लक्षण वडे द्रव्य ओळखाय छे.
(२) उत्पाद–व्यय–ध्रुव लक्षण वडे द्रव्य ओळखाय छे.
(३) गुण–पर्यायोरूप लक्षण वडे द्रव्य ओळखाय छे.
जगतनी जड के चेतन कोई पण वस्तुमां आवा त्रण लक्षणो होय छे. अने
पोतानां ते–ते लक्षण वडे ज ते–ते द्रव्य लक्षित थाय छे. एकना अस्तित्व वडे बीजानुं
अस्तित्व लक्षित थतुं नथी, अथवा एक द्रव्यना उत्पाद वडे के तेनां गुण–पर्यायवडे
बीजुं द्रव्य लक्षित थतुं नथी. जेनां गुण होय ते वडे ते द्रव्य ज लक्षित थाय छे.
जेमके जीवनी अवस्थामां दयानो भाव ऊपज्यो ते दयावाळा जीवनुं अस्तित्व
लक्षित करावे छे, पण ते उत्पाद बीजाने लक्षित करावतो नथी. एक पदार्थनां उत्पाद–
व्यय–धौव्यथी ते पदार्थ लक्षित थाय छे, पण एकना उत्पाद–व्यय–ध्रुव वडे बीजो पदार्थ
लक्षित थतो नथी. दरेक द्रव्यनां उत्पाद–व्यय–धौव्य के गुणपर्यायो पोतपोतामां ज छे,
अने तेमनाथी ते द्रव्य अभिन्न छे.
सम्यग्दर्शनादि धर्मपर्याय उत्पन्न थई, ते जीवद्रव्यने लक्षित करावे छे; पण ते
पर्याय वाणी वगेरे निमित्तोने लक्ष करती नथी; वाणी पर्याय वडे तेनां
पुद्गलपरमाणुओ लक्षित छे, तेनां वडे जीवद्रव्य लक्षित नथी.
वस्तुनुं पोतानुं जे लक्षण होय, अथवा वस्तुना जे धर्मो होय ते पोतामां ज होय
छे, पोताथी भिन्न होतां नथी.