Atmadharma magazine - Ank 315
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९६ : प :
सत्रूप द्रव्यनां लक्षणनुं त्रण प्रकारे कथन
(पंचास्तिकाय गाथा ८ थी ११ ना प्रवचनमांथी)
सूक्ष्मताथी वस्तुनुं स्वरूप समजावतो आ लेख
गतांकमां स्थळ–संकोचने कारणे बाकी रही गयेल, ते
अहीं आपीए छीए. संतोए कहेलुं आवुं सत्नुं स्वरूप
समजतां, पोतानी स्व–पर्यायने माटे परनी सामे
जोवानुं रहेतुं नथी; परथी भिन्न पोताना द्रव्यनी
सन्मुखता थाय छे. आ रीते सत्ना ज्ञानवडे पराश्रित
बुद्धि मटे छे, भेदज्ञान थाय छे ने मोक्षमार्ग प्रगटे छे.
अहो! सर्वज्ञदेवे कहेलुं तत्त्वज्ञान अपूर्व भेदज्ञान
करावीने स्वसन्मुखता अने वीतरागता करावे छे.
नित्य–अनित्य स्वरूप जे सत् वस्तु, तेनुं अस्तित्व आठमी गाथामां बताव्युं;
हवे एवा अस्तिरूप–सत्रूप जे द्रव्यो तेमनुं स्वरूप केवुं छे ते ओळखावे छे.
उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप जे सत् द्रव्य छे, ते द्रव्य पोतानी सद्भावपर्यायने पोते
ज द्रवे छे, पोते ज द्रवीने ते रूपे परिणमे छे. पोतानी सुख के दुःखपर्यायरूपे
आत्मद्रव्य पोते परिणमे छे. एटले, प्रतिकूळ संयोगने कारणे दुःख थयुं–अथवा
अनुकूळ सामग्रीने कारणे सुख थयुं एम नथी. दुःखपर्यायने परद्रव्य नथी द्रवतुं,
पण आत्मद्रव्य पोतानी ते पर्यायने द्रवे छे; अने सुखपर्यायने, ज्ञानपर्यायने,
श्रद्धापर्यायने, अनंतगुणोनी पर्यायने आत्मा पोते द्रवे छे. आत्माना गुणपर्यायनुं
विद्यमानपणुं कोई बीजाना कारणे नथी.
जेम विद्यमान वस्तु पोताथी ज सत् छे, तेनुं सत्पणुं–होवापणुं बीजाने कारणे
नथी; तेम तेना गुणो–पर्यायो पण पोताथी ज छे, केमके पोते गुणपर्यायस्वरूप छे;
तेमज तेना उत्पाद–व्यय–ध्रुव पण पोताथी छे, केमके सत् पोते उत्पाद–व्यय–ध्रुवस्वरूप
छे. आम दरेक वस्तु स्वभावथी ज गुणपर्यायस्वरूप, उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप अने सत्
स्वरूप छे.