अहीं आपीए छीए. संतोए कहेलुं आवुं सत्नुं स्वरूप
समजतां, पोतानी स्व–पर्यायने माटे परनी सामे
जोवानुं रहेतुं नथी; परथी भिन्न पोताना द्रव्यनी
सन्मुखता थाय छे. आ रीते सत्ना ज्ञानवडे पराश्रित
बुद्धि मटे छे, भेदज्ञान थाय छे ने मोक्षमार्ग प्रगटे छे.
अहो! सर्वज्ञदेवे कहेलुं तत्त्वज्ञान अपूर्व भेदज्ञान
करावीने स्वसन्मुखता अने वीतरागता करावे छे.
आत्मद्रव्य पोते परिणमे छे. एटले, प्रतिकूळ संयोगने कारणे दुःख थयुं–अथवा
अनुकूळ सामग्रीने कारणे सुख थयुं एम नथी. दुःखपर्यायने परद्रव्य नथी द्रवतुं,
पण आत्मद्रव्य पोतानी ते पर्यायने द्रवे छे; अने सुखपर्यायने, ज्ञानपर्यायने,
श्रद्धापर्यायने, अनंतगुणोनी पर्यायने आत्मा पोते द्रवे छे. आत्माना गुणपर्यायनुं
विद्यमानपणुं कोई बीजाना कारणे नथी.
तेमज तेना उत्पाद–व्यय–ध्रुव पण पोताथी छे, केमके सत् पोते उत्पाद–व्यय–ध्रुवस्वरूप
छे. आम दरेक वस्तु स्वभावथी ज गुणपर्यायस्वरूप, उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप अने सत्
स्वरूप छे.