चेतन–जातने छोडतो नथी; नवी पर्याय ऊपजे ते पण चेतन–जातने छोडया वगर ज
ऊपजे छे. चेतनपणुं सळंग नित्य टकी रहे छे. ए ज रीते छए द्रव्योमां पोतपोतानी
जातनो अत्याग छे, तेनी जात कदी बदलती नथी. मिथ्यात्व छूटीने सम्यक्त्व नवुं प्रगटे
पण जीव तो जीव ज रहे छे. मिथ्यात्वनो नाश थतां जीवनो नाश थई जतो नथी. अने
सम्यक्त्व उत्पन्न थतां जीव कांई नवो उत्पन्न थतो नथी. बंने अवस्थामां जीवनुं
जीवपणुं टकी रहे छे. ए ज रीते पुद्गलनी सर्व अवस्थाओमां पुद्गलद्रव्य पुद्गलपणे
टके छे, कोई जीव देवमांथी मनुष्य थयो, के मनुष्यमांथी देव थयो, छतां चेतनरूप जीव ते
तो चेतनरूप ज रह्यो.
व्यय–ध्रुव सामान्य आदेशे द्रव्यथी अभिन्न छे; ने विशेष आदेशे तेओ द्रव्यथी भिन्न छे,
केमके उत्पाद, व्यय अने ध्रुव ए प्रत्येक एकेक अंशनी अपेक्षाए छे.
गुण एटले अन्वयरूप विशेषो; एकरूप रहेनारा विशेषो;
पर्याय एटले व्यतिरेकरूप विशेषो; बदलाता विशेषो.
आवा गुणो द्रव्यमां एकसाथ वर्ते छे; ने पर्यायो क्रमे वर्ते छे. आ गुणपर्यायो ते
स्वरूप छे.