Atmadharma magazine - Ank 315
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : : पोष : २४९६
उत्पाद–व्यय थवा छतां वस्तुमां स्वजातिनो त्याग नथी; स्वजातिनो अत्याग
तेनुं नाम ध्रुवता छे. जीवमां मतिज्ञानादि पर्यायनो व्यय थवा छतां ते जीव पोतानी
चेतन–जातने छोडतो नथी; नवी पर्याय ऊपजे ते पण चेतन–जातने छोडया वगर ज
ऊपजे छे. चेतनपणुं सळंग नित्य टकी रहे छे. ए ज रीते छए द्रव्योमां पोतपोतानी
जातनो अत्याग छे, तेनी जात कदी बदलती नथी. मिथ्यात्व छूटीने सम्यक्त्व नवुं प्रगटे
पण जीव तो जीव ज रहे छे. मिथ्यात्वनो नाश थतां जीवनो नाश थई जतो नथी. अने
सम्यक्त्व उत्पन्न थतां जीव कांई नवो उत्पन्न थतो नथी. बंने अवस्थामां जीवनुं
जीवपणुं टकी रहे छे. ए ज रीते पुद्गलनी सर्व अवस्थाओमां पुद्गलद्रव्य पुद्गलपणे
टके छे, कोई जीव देवमांथी मनुष्य थयो, के मनुष्यमांथी देव थयो, छतां चेतनरूप जीव ते
तो चेतनरूप ज रह्यो.
उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप जे लक्षण छे ते त्रणे युगपत वर्ते छे, ने द्रव्यना
स्वभावभूत छे. द्रव्य पोते ज एवा उत्पाद–व्यय–ध्रुव स्वभाववाळुं छे. आ उत्पाद–
व्यय–ध्रुव सामान्य आदेशे द्रव्यथी अभिन्न छे; ने विशेष आदेशे तेओ द्रव्यथी भिन्न छे,
केमके उत्पाद, व्यय अने ध्रुव ए प्रत्येक एकेक अंशनी अपेक्षाए छे.
आवा उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप लक्षणवडे द्रव्यनुं स्वरूप ओळखाय छे, उत्पाद–व्यय–
ध्रुव त्रणे वच्चे समयभेद नथी. द्रव्यमां एक समयमां त्रणे एकसाथे वर्ते छे.
(३) त्रीजा प्रकारे द्रव्यनुं लक्षण ‘गुण–पर्याय’ छे. गुणपर्यायवत् द्रव्य छे.
गुण एटले अन्वयरूप विशेषो; एकरूप रहेनारा विशेषो;
पर्याय एटले व्यतिरेकरूप विशेषो; बदलाता विशेषो.
आवा गुणो द्रव्यमां एकसाथ वर्ते छे; ने पर्यायो क्रमे वर्ते छे. आ गुणपर्यायो ते
द्रव्यथी कथंचित् भिन्न छे ने कथंचित् अभिन्न छे, तथा स्वभावभूत छे. आवुं द्रव्यनुं
स्वरूप छे.
आ त्रणे लक्षणनां ३ सूत्रो तत्त्वार्थसूत्रमां आवे छे–
. सत् द्रव्यलक्षणम्।
. उत्पादव्ययधौव्ययुक्तं सत्।
. गुणपर्ययवत् द्रव्यम्।