Atmadharma magazine - Ank 315
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९६ : ९ :
कुंदकुंदभगवाननां शास्त्रमां ए बधानां मूळियां छे. तेमणे वस्तुस्वरूपनुं
अलौकिक वर्णन कर्युं छे. मोक्षशास्त्र कुंदकुंदाचार्यदेवना शिष्य उमास्वामीए बनाव्युं छे.
वस्तुना जे उत्पाद–व्यय–ध्रुव छे ते त्रणे भावो वस्तुना स्वभावभूत छे, केमके
वस्तुना पोताना ते भावो छे. जडना उत्पाद–व्यय–ध्रुव जडना स्वभावभूत, ने
आत्माना उत्पाद–व्यय–ध्रुव आत्माना स्वभावभूत छे. पछी रागपर्याय होय के
वीतरागपर्याय होय, पण जीवनी ते पर्याय परथी जुदी छे, ने जीवथी अभिन्न छे, एम
स्व–पर द्रव्यनी वहेंचणी करवी छे. पछी आवी वहेंचणीनुं फळ वीतरागता आवे छे,–ते
समजावशे.
वस्तुनुं अस्तित्व त्रण लक्षणथी बताव्युं, ते त्रणे लक्षणो साथे ज होय छे. एक
लक्षण कहेतां बाकीनां बे लक्षणो पण तेमां आवी ज जाय छे.
(१) जे सत् होय ते–
उत्पाद–व्यय–ध्रुववाळुं होय, अने गुणपर्यायवाळुं होय.
(२) जे उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप होय ते–
सत् होय, अने गुणपर्यायोवाळुं होय.
(३) जे गुण–पर्यायोवाळुं होय ते–
सत् होय, अने उत्पाद–व्यय–ध्रुववाळुं होय.
आवा ज लक्षणवाळुं वस्तुस्वरूप छे. जो आम न होय तो वस्तु ज न होई शके,
ते समजावे छे:–
सत् द्रव्यलक्षणम्
जो वस्तुमां सतपणुं न होय तो–उत्पाद–व्यय–ध्रुवता के गुण–पर्याय शेमां रहे?
सत् वस्तु नित्य–अनित्यस्वरूप होय छे; तेमां नित्यता कहेतां धौव्य जाहेर थाय
छे ने अनित्यता कहेतां उत्पाद–व्यय जाहेर थाय छे, ए रीते सत्ने उत्पाद–व्यय–ध्रुवपणुं
पण छे.
तथा उत्पाद–व्यय–ध्रुव–तेमां ध्रुव कहेतां गुणो, अने उत्पाद–व्यय कहेतां पर्यायो,
ते गुण–पर्यायो साथे वस्तुनुं एकपणुं दर्शावे छे एटले के वस्तुने गुणपर्यायवाळी जाहेर
करे छे. आम ‘सत्’ कहेतां त्रणे लक्षणो एक साथे जाहेर थाय छे एटले के ज्ञानमां आवे
छे. ‘सत्’ ने पोताना गुण–पर्यायनी साथे एकता छे, पण बीजाना