Atmadharma magazine - Ank 315
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: १० : : पोष : २४९६
गुण–पर्याय साथे एकता नथी. वस्तुना उत्पाद–व्यय–ध्रुव कोई बीजाने जाहेर नथी
करता, परने जाहेर नथी करता, पण पोताना गुण–पर्यायो साथे ज एकताने जाहेर करे
छे. परथी तो जुदापणुं जाहेर करे छे. आवुं भेदज्ञान करीने स्वसन्मुख थवुं ते तात्पर्य
छे.
उत्पाद–व्यय–धौव्ययुक्तं सत्
हवे जेम द्रव्यने ‘सत्’ कहेतां बाकीनां बे लक्षण पण तेमां आवी जाय छे, तेम
द्रव्यने उत्पाद–व्यय–ध्रुवलक्षणवाळुं कहेतां तेमां पण बाकीनां बे लक्षण आवी जाय छे.
ध्रुवपणुं कहेतां नित्यता आवी, ने उत्पाद–व्यय कहेतां अनित्यता आवी; ए रीते नित्य–
अनित्यस्वरूप पारमार्थिक सत् जणाय छे.
तेमज, ध्रुवपणुं गुणांश–अपेक्षाए छे ने उत्पाद–व्ययपणुं पर्याय–अपेक्षाए छे;
ए रीते उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप वस्तुमां गुण–पर्यायो पण जाहेर थाय छे. गुण–पर्याय वडे
ज उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप वस्तुनुं स्वरूप ओळखाय छे, तेथी गुण–पर्याय ते वस्तुना
स्वरूपनी प्राप्तिमां कारणभूत छे. गुण वडे ध्रुवतानी प्राप्ति छे ने पर्याय वडे उत्पाद–
व्ययनी प्राप्ति छे. वस्तुने उत्पाद–व्यय–ध्रुववाळी कहेतां ते गुण–पर्यायवाळी छे एम पण
आवी ज जाय छे. गुण–पर्यायो वगर उत्पाद–व्यय–ध्रुव सिद्ध थई शके नहीं. आ रीते,
वस्तुने उत्पाद–व्यय–ध्रुव लक्षणवाळी कहेतां तेमां बाकीनां बे लक्षणो (सत्पणुं अने
गुण–पर्याय) पण आवी जाय छे.
गुण–पर्ययवत् द्रव्यम्
हवे, जेम सत् कहेतां बाकीनां बे लक्षण पण आवी जाय छे, अने उत्पाद–व्यय–
ध्रुव कहेतां पण बाकीनां बे लक्षण पण आवी जाय छे, तेम वस्तुने गुण–पर्यायवाळी
कहेतां तेमां पण बाकीनां बे लक्षणो (सत्पणुं अने उत्पाद–व्यय–ध्रुव) पण आवी जाय
छे. वस्तुमां अन्वयरूप गुणो तो ध्रुवता सूचवे छे, अने व्यतिरेकरूप पर्यायो उत्पाद–
व्ययने सूचवे छे, आ रीते गुण–पर्यायो ते उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप वस्तु जणावे छे. ध्रुवता
वगर गुण न होय, ने उत्पाद–व्यय वगर पर्यायो न होय.
वळी गुण–पर्यायमां, गुण ते तो कायम टकनार नित्य छे, अने पर्यायो क्षणे क्षणे
उत्पत्ति–विनाशरूप अनित्य छे; ए रीते नित्य–अनित्य सत् वस्तुने गुण–पर्यायो
प्रसिद्ध करे छे.