करता, परने जाहेर नथी करता, पण पोताना गुण–पर्यायो साथे ज एकताने जाहेर करे
छे. परथी तो जुदापणुं जाहेर करे छे. आवुं भेदज्ञान करीने स्वसन्मुख थवुं ते तात्पर्य
छे.
ध्रुवपणुं कहेतां नित्यता आवी, ने उत्पाद–व्यय कहेतां अनित्यता आवी; ए रीते नित्य–
अनित्यस्वरूप पारमार्थिक सत् जणाय छे.
ज उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप वस्तुनुं स्वरूप ओळखाय छे, तेथी गुण–पर्याय ते वस्तुना
स्वरूपनी प्राप्तिमां कारणभूत छे. गुण वडे ध्रुवतानी प्राप्ति छे ने पर्याय वडे उत्पाद–
व्ययनी प्राप्ति छे. वस्तुने उत्पाद–व्यय–ध्रुववाळी कहेतां ते गुण–पर्यायवाळी छे एम पण
आवी ज जाय छे. गुण–पर्यायो वगर उत्पाद–व्यय–ध्रुव सिद्ध थई शके नहीं. आ रीते,
वस्तुने उत्पाद–व्यय–ध्रुव लक्षणवाळी कहेतां तेमां बाकीनां बे लक्षणो (सत्पणुं अने
गुण–पर्याय) पण आवी जाय छे.
कहेतां तेमां पण बाकीनां बे लक्षणो (सत्पणुं अने उत्पाद–व्यय–ध्रुव) पण आवी जाय
छे. वस्तुमां अन्वयरूप गुणो तो ध्रुवता सूचवे छे, अने व्यतिरेकरूप पर्यायो उत्पाद–
व्ययने सूचवे छे, आ रीते गुण–पर्यायो ते उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप वस्तु जणावे छे. ध्रुवता
वगर गुण न होय, ने उत्पाद–व्यय वगर पर्यायो न होय.
प्रसिद्ध करे छे.