: पोष : २४९६ : ११ :
आम वस्तुमां त्रणे लक्षण एक साथे छे–सत्पणुं, उत्पाद–व्यय–ध्रुवपणुं अने
गुण–पर्यायवंतपणुं. त्रणमांथी कोई पण प्रकार द्वारा वस्तुने लक्षमां लेतां त्रणे प्रकारनां
लक्षण तेमां आवी ज जाय छे; एवुं ज वस्तुस्वरूप छे. अहो, अलौकिक वस्तु स्वरूप
सर्वज्ञदेवे जैनशासनमां प्रसिद्ध कर्युं छे.
उत्पाद–व्यय–ध्रुवने द्रव्यनुं लक्षण कह्युं; ते लक्षणने बे नयोथी विभक्त करीने कहे
छे के ध्रुवपणुं तो द्रव्यार्थिकनयथी छे, ने उत्पाद–व्यय ते पर्यायार्थिकनयथी छे. सत्ने
उत्पाद–व्यय वगरनुं कहेवुं, तेने ज वळी उत्पाद–व्ययवाळुं कहेवुं,–तेमां शुं विरोध छे?
ना; आ बधुं निरवद्य छे, निर्बाध छे, केमके द्रव्य अने पर्यायोनुं अभिन्नपणुं छे, तेथी
एक ज वस्तुमां बे नयवडे ए बंने प्रकार संभवे छे, तेमां कांई विरोध नथी. वस्तुना
सहवर्ती पर्यायो एटले के सहवर्ती अंशो, एटले के गुणो, तेनी अपेक्षाए द्रव्यने ध्रुवता
छे, अनादि अनंत सत् एवुं द्रव्य तेने उत्पत्ति के विनाश नथी. अने क्रमवर्ती पर्यायोनी
अपेक्षाए वस्तुमां उत्पाद–व्यय छे. उत्पाद–व्यय ने ध्रुव ते पर्यायोनां (भेदोनां) छे,
अने ते बधा पर्यायोने द्रव्यथी अभिन्नपणुं छे, तेथी द्रव्य उत्पाद–व्यय–ध्रुव लक्षणवाळुं
छे.
द्रव्य कदी पर्याय विनानुं होतुं नथी; पर्याय कदी द्रव्य विनानी होती नथी. द्रव्य
अने पर्याय बंने एक अस्तित्वमां ज रहेलां छे, एटले वस्तुपणे तेमने अभेद छे. आवुं
अस्तित्व ते वस्तुनो स्वभाव छे.
द्रव्य कदी पर्याय वगरनुं होतुं ज नथी एवुं सत्नुं स्वरूप छे, तो पछी
द्रव्यनी पर्याय बीजाने लीधे थाय ए वात क््यां रही? अथवा निमित्त न आवे तो
पर्याय न थाय ए वात क््यां रही? द्रव्य सत् होय ते पर्याय सहित ज होय, पर्याय
वगर द्रव्य होय नहीं. ए ज रीते पर्याय कदी द्रव्य वगर होती नथी. पर्याय ‘द्रव्य
वगर न होय’–एम कह्युं पण पर्याय ‘निमित्त वगर न होय’ एम न कह्युं. पोतानी
पर्याय माटे पर सामे जोवानुं न रह्युं, परथी भिन्न पोताना द्रव्यने जोवानुं रह्युं.
अहो, सर्वज्ञदेवे कहेलुं तत्त्वज्ञान अपूर्व भेदज्ञान करावीने, स्वसन्मुखता अने
वीतरागता करावे छे.