Atmadharma magazine - Ank 315
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : : पोष : २४९६
जे बंधननुं कारण समजावीने तेनाथी छोडावे छे;
अने मोक्षनुं कारण बतावीने ते प्रगट करावे छे.

*
आत्मा उपयोगस्वरूप छे. ते उपयोगमां एकतारूप अनुभव ते सुख छे; अने ते
मोक्षनुं कारण छे.
* उपयोगने भूलीने रागादि परभावोमां एकतानो अनुभव ते दुःख छे; अने ते
संसारनुं कारण छे.
* बहारना अनुकूळ–प्रतिकूळ संयोग ते सुख–दुःखनुं कारण नथी. पोताना
अज्ञानभावथी ज जीव दुःखी थाय छे, ने पोताना वीतरागभावथी ज जीव
सुखी थाय छे.
* हवे बहारनो जे अनुकूळ के प्रतिकूळ संयोग छे ते पण बीजो जीव आपी शकतो
नथी, जीवना पोताना शुभ–अशुभ कर्मना उदयअनुसार ज ते संयोग मळे छे.
* एक जीव एम माने के हुं बीजा जीवने अमुक संयोग आपीने तेने सुखी के दुःखी
करी दउं,–तो एम माननार जीव अज्ञानी छे. परने सुखी–दुःखी करवाना
शुभाशुभ भाव साथे जे एकत्वबुद्धि छे ते अज्ञान छे, ते बंधनुं कारण छे, ने ते
संसारनुं मूळ छे.
* परजीवनुं जीवन के मरण तेना आयुअनुसार थाय छे; छतां तेनुं जीवन के मरण
में कर्युं–एम अज्ञानी माने छे. ए ज रीते मारा जीवन–मरणने बीजो करे एम
पण अज्ञानी माने छे.
* हवे परने मारवा–जीवाडवानुं, के दुःखी–सुखी करवानुं तो जीव करी शकतो नथी;
पण हुं तेने मारुं–जीवाडुं अथवा दुःखी–सुखी करुं एवा जे पाप के पुण्यना
परिणाम, ते परिणाम साथे उपयोगने एकमेक मानीने, अज्ञानी उपयोगने
मलिन करे छे, ते मलिन उपयोगरूप अध्यवसान ज बंधननुं कारण छे.
* उपयोग ते जीवनो निर्दोष वीतरागस्वभाव छे; ते उपयोगमां पापनुं कर्तापणुं
माने ते तो मिथ्यात्व छे, ने उपयोगमां पुण्यनुं कर्तापणुं माने तो ते पण
मिथ्यापणुं ज छे, ने ते पण बंधनुं ज कारण छे, संसारनुं ज कारण छे.