: पोष : २४९६ : १३ :
* पुण्य अने पाप बंनेथी जुदो जे शुद्ध उपयोग छे ते ज मोक्षनुं कारण छे.
* पुण्य के पाप बंने परद्रव्यना आश्रये थाय छे, ते पराश्रितभावो छोडवा जेवा छे;
* स्वाश्रित एवा शुद्ध रत्नत्रयभाव ते मोक्षमार्ग छे, ते ज आदरणीय छे.
* जेटला व्यवहारभावो छे ते तो बधाय परद्रव्यने आश्रित छे; निश्चयरूप
मोक्षमार्ग तो शुद्ध स्वद्रव्यना ज आश्रये छे, तेमां परद्रव्यनो आश्रय जरापण
नथी.
* माटे हे भाई! परने सुखी–दुःखी करवानी के जीवाडवा–मारवानी मिथ्याबुद्धि तो
छोड, अथवा परथी मने सुख–दुःख के बंध–मोक्ष वगेरे थाय–एवी मिथ्याबुद्धि
तो छोड; ने शुभाशुभ सर्वप्रकारना रागभावो साथे ज्ञाननी एकत्व बुद्धिरूप
मिथ्यात्वने पण छोड. जे शुद्ध उपयोगरूप आनंदमय चैतन्यभूमि, तेमां ज
तन्मय थईने आत्माने अनुभवमां ले; ते ज मोक्षनुं कारण छे.
(समयसार–बंधअधिकार)
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जैनसिद्धांतना पंचशील
(१) आत्मा उपयोगस्वरूप छे, ते उपयोगरूपे ज रहे ने परभावरूप न परिणमे,
एनुं नाम धर्म छे.
(२) उपयोगस्वरूप आत्मा पोताथी भिन्न बीजा कोई पण जड के चेतन पदार्थना
कोईपण कार्यने करी शकतो नथी.
(३) उपयोगस्वरूप आत्मा पोतानी शुद्धताने भूलीने, पुण्य के पापरूप पोताने
मानीने ते भावनो कर्ता थाय छे, ते अज्ञान छे, अधर्म छे.
(४) ज्ञानी पोताने परथी जुदो ने पुण्य–पापथी जुदो उपयोगस्वरूप अनुभवे छे
एटले ते परद्रव्यनो के परभावनो कर्ता थतो नथी, तेमां मग्न थतो नथी. ने
अज्ञानी पोताने पर द्रव्यनो तथा परभावनो कर्ता मानीने तेमां ज मग्न रहे छे.
(प) आम जाणीने हे जीव! तुं अज्ञान अने अधर्मथी छूटवा माटे परद्रव्य तथा
परभावोने तारा चैतन्यस्वरूपथी जुदा जाणीने तेमनुं कर्तृत्व छोड; अने
उपयोग–स्वरूप आत्माने ओळखीने तेमां तन्मय था.