जगतमां जे कोई जीवो बंधाय छे तेओ पोताना ज मिथ्यात्वादि भावोने लीधे
वीतरागभाव वडे मुक्ति पामे छे.–तो हे जीव! तुं तेमने शुं करे छे? परने हुं बंधावुं के
मुक्त करुं ए मान्यता खोटी छे. माटे ते मिथ्यामान्यता छोड. आत्मा तो ज्ञानस्वरूप छे,
तेना आश्रये सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र प्रगट करवा ते निश्चयथी मोक्षमार्ग छे. जे जीवो
आवा वीतराग मोक्षमार्गमां स्थित छे तेओ ज मोक्ष पामे छे; ने रागमां स्थित जीवो
बंधाय छे. आ रीते बंध मोक्ष जीवने पोताना भावथी ज थाय छे, परने लीधे थता
नथी.
बंधाय. आ जीवने तो मुक्त करवानो अभिप्राय हतो पण सामो जीव तेना पोताना
वीतरागभाव वगर मुक्त थतो नथी, एटले आ जीवना अभिप्राय प्रमाणे तो कार्य थतुं
नथी; माटे ‘परने हुं मुकावुं’–एवो जीवनो अभिप्राय निरर्थक छे–मिथ्या छे, पोताने ज
अनर्थनुं कारण छे. कदाच सामो जीव वीतरागभाव करीने मुक्त थाय, तोपण ए तो
एना पोताना ज वीतरागभावने लीधे मुक्त थयो छे,–नहि के आ जीवना अभिप्रायने
लीधे.–माटे परना कर्तृत्वनी बुद्धि असत्य छे, मिथ्या छे अने दुःखनुं कारण छे.
परिणमे अने सरागभावरूप न परिणमे तो तेने बंधन न थाय पण मुक्ति थाय. आ
जीवने तो तेने बंधन करवानो अभिप्राय हतो पण सामो