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जीव तेना पोताना रागभाव वगर बंधातो नथी, एटले आ जीवना अभिप्राय प्रमाणे
तो कार्य थतुं नथी; माटे परने हुं बंधन करी दउं के दुःखी करी दउं–एवो जीवनो
अभिप्राय निरर्थक छे, मिथ्या छे, ने पोताने ज अनर्थनुं कारण छे. कदाच ते वखते
सामो जीव तेना पोताना रागादिभावोने लीधे कर्मथी बंधाय के दुःखी थाय, तोपण ए तो
एना पोताना ज रागभाव वडे बंधायो छे ने दुःखी थयो छे,–नहि के तारा अभिप्रायने
लीधे.–माटे परना कर्तृत्वनी बुद्धि असत्य छे, मिथ्या छे, अने दुःखनुं कारण छे.
आ जीवनो अभिप्राय हो के न हो, तेनी अपेक्षा वगर ज सामो जीव पोताना
भावअनुसार बंध के मोक्षने पामे छे.
आ जीव तेने बांधवानो अभिप्राय न करे तोपण सामो जीव जो रागादिभावरूप
परिणमे तो ते पोताना रागभाव वडे बंधाय छे.
आवुं स्पष्ट वस्तुस्वरूप समजावीने आचार्यदेव कहे छे के हे भाई!
सौ जीव अध्यवसान कारण कर्मथी बंधाय ज्यां,
ने मोक्षमार्ग स्थित जीवो मुकाय, तुं शुं करे भला!
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दोढसो वर्ष पहेलां सम्मेदशिखर पर दि. जिनमूर्ति हती
प्रसिद्ध अंग्रेज साहित्यकार क्रुक साहेब (W. Crook) लखे छे के–A
visitor, “who examined in 1827 found the image of PARSVANATH
to represent the saint, sitting naked in the attitude of maditation. His
head shillded by the snake, which is his special emblem”
(W. Crook in ERE)
“यहां [सम्मेदशिखरजी पर] तीन मुख्य मंदिर है–एक पार्श्वनाथजीका भी
इन्हीमें है; सन 1827 ई. में एक इंग्रेजने इनके दर्शन किये थे। उन्होंने पार्श्वनाथ
भगवानकी नग्नमूर्तिको ध्यानाकार में उनके सर्पचिन्हसे मंडित यहां पाया था।”
(बाबु कामताप्रसादजी जैन M. R. A. S.)
(*”ईन्साईकलोपेडिया ओफ रिलीजन एन्ड ईथिकस–पारसनाथ हिल”मांथी)