ज्यारे द्वारिकानगरी बळीने भस्मीभूत थई गई, श्रीकृष्ण अने बलभद्र जेवा
न बचावी शक्या. त्यांथी हस्तिनापुर जतां रस्तामां पाणी विना तरस्या श्रीकृष्णनुं
पोताना भाईना हाथे मृत्यु थयुं, संसारथी विरक्त बलभद्रजी दीक्षा लईने स्वर्गे
सीधाव्या. त्यार बाद पांडवोए द्वारकानगरी फरीथी नवी वसावी अने श्रीकृष्णना भाई
जरतकुमार (के जेना तीरथी श्रीकृष्णनुं मृत्यु थयेल) तेमने द्वारिकाना राजसिंहासने
बेसाड्या...
देवो द्वारा रचाणी हती छतां ते पण आजे बळीने खाख थई गई. श्रीकृष्ण ज्यां राज
करता हता, प्रभु नेमकुमार जेनी राजसभामां बिराजता हता अने ज्यां हंमेशां नवा
नवा मंगल उत्सव थता हता ते नगरी आजे सुनसाम थई गई छे. क््यां गया ते
रुकमिणी वगेरे राणीओना सुंदर महेलो! अने क््यां गयां ते हर्षभरेला पुत्रो वगेरे
कुटुंबीजनो! खरेखर कुटुंब वगेरेनो संयोग क्षणभंगुर छे, ते तो वादळांनी जेम
जोतजोतामां विलय थई जाय छे; संयोगो तो नदीना वहेता प्रवाह जेवा चंचळ छे, तेने
स्थिर राखी शकाता नथी. संसारनी आवी विनाशिक दशा देखीने विवेकी जीव विषयोना
रागथी विरक्त थई जाय छे.
नहि; ज्यां आ नजीकनुं शरीर पण पोतानुं नथी त्यां दूरनुं परद्रव्य तो पोतानुं केम
होय?–बाह्य वस्तु पोतानी नथी छतां ते बाह्य वस्तुमां सुख–दुःख मानवा ते मात्र
कल्पना छे. पोतानी चीज तो खरेखर आत्मा ज छे. विषय–भोगो भोगवती वखते
जीवने सुखकर लागे छे पण पछी ते नीरस जणाय छे अने तेनुं फळ दुःखरूप छे,
पण मूढ जीव तेना सेवनथी पोताने सुखी माने छे; एवा जीवो छती आंखे अंध
थईने दुःखना कुवामां पडे छे ने दुर्गतिमां जाय छे. दादरनी खूजली जेवा विषयो
परिणामे दुःखदायक ज छे, अने तेनाथी जीवने कदी तृप्ति मळती नथी, तेना
त्यागथी ज तृप्ति थाय छे.