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स्वभावना आश्रये निर्मळपर्याय
प्रगटे तेनुं नाम जिनमत
चिदानंदस्वभावनो जेने रंग लागे तेने धर्मनो रंग
लाग्यो कहेवाय; एनो महिमा मेरुथी पण मोटो छे.
(सोनगढ: पोष सुद ११, समयसार गाथा १२)
परभावोथी भिन्न, ज्ञायक चिदानंदस्वभावने जाणीने तेना अनुभवमां
एकाग्रता ते शुद्धनय छे; अने तेना आश्रये जे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षमार्ग
प्रगट्यो ते तीर्थ छे. ते शुद्ध सद्भुतव्यवहार छे. पर्यायमां आवी साधकदशाना अनेक
प्रकारो छे ते जाणवायोग्य छे. शुद्धस्वभावमां एकाग्र थईने निर्मळ पर्याय प्रगट करवा
जेवी छे.–तेमां निश्चय–व्यवहार बंने आवी जाय छे.
ज्यां चेतन त्यां अनंतगुण केवळी बोले एम;
प्रगट अनुभव आत्मनो निर्मळ करो सप्रेम...
चैतन्यनो प्रेम करवो एटले तेमां एकाग्रता करवी; अखंड चिदानंदस्वभावमां
अनंती निर्मळ पर्यायो प्रगटवानी ताकात छे; आवी वस्तुने लक्षमां लेवी ते निश्चय छे;
तेना आश्रये निर्मळ पर्याय प्रगटी ते व्यवहार छे; ते निश्चयमोक्षमार्गरूप पर्याय छे.
रागादि विकल्पो ते तो अशुद्ध व्यवहार छे.
आखी वस्तुनी अपेक्षाए निर्मळ पर्याय ते एक अंश छे, ने अंश छे तेथी
व्यवहार छे. तेमां साधकदशा ते तीर्थ छे अने मोक्षदशा प्रगटे ते तीर्थफळ छे; आवा
तीर्थ अने तीर्थफळ ते बंने व्यवहार छे, अंश छे, पर्याय छे. द्रव्यपणे आत्मा
भगवान छे ते निश्चय, अने तेना आश्रये पर्यायमां भगवानपणुं प्रगटे ते व्यवहार.
आवो भगवान आत्मा, राग अने रोग वगरनो चिदानंद प्रभु, तेने ओळखीने
अनुभवमां लेवा जेवो छे.
जिनमत एटले वीतरागमार्ग. आत्मानी निर्मळदशारूप मोक्षमार्ग जे रीते प्रगटे
तेनुं नाम जिनमत छे. हे जीवो! जो तमे जिनमतने प्रवर्ताववा चाहता हो एटले के
आत्मामां वीतरागपर्याय प्रगट करवा चाहता हो तो निश्चय अने व्यवहार बंने नयोने
जाणो; ते बे नयोने न छोडो. निश्चय तो वस्तुस्वरूप बतावे छे, अने