Atmadharma magazine - Ank 316
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: १० : : महा : २४९६
आत्माने ढंढोळीने
सम्यग्दशन प्रगट कर
शुद्ध आत्माना आधारे अंदरथी आत्माना आनंदनो
अवाज आवे एटले के अनुभव थाय ते सम्यग्दर्शन छे. प्रभु!
तुं तारा घरमां अंदर जईने, आत्माने ढंढोळीने आवुं
सम्यग्दर्शन प्रगट कर.
भाईश्री छोटालाल डामरदास (ध्रांगध्रावाळा)
ना मकानना वास्तुप्रसंगे श्राविका–ब्रह्मचर्याश्रमना
स्वाध्यायभवनमां पू. गुरुदेवनुं प्रवचन
(पोष वद तेरस: सोनगढ: समयसार गा. २७६–२७७)
मोक्षना कारणरूप जे निश्चय सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते पोताना शुद्धआत्माना
आश्रये ज छे. ते शास्त्र वगेरे परना आश्रये नथी. शास्त्र तरफनुं वलण ते पराश्रय छे,
अने एवा पराश्रयवाळा ज्ञानथी आत्मानुं स्वरूप समजातुं नथी. माटे ते पराश्रय
छोडवा जेवो छे, ने शुद्धआत्मानो आश्रय करवा जेवो छे.
जेम सूर्य ते प्रकाशनो पूंज छे, प्रकाश माटे तेने परनो आश्रय नथी, तेम आत्मा
पोते चैतन्यप्रकाशनो पूंज छे, तेने ज्ञानप्रकाशमां परनो आश्रय नथी. पोताना
ज्ञानस्वभावने भूलीने परना आश्रयनी बुद्धिथी जीव चार गतिना दुःखमां रखडे छे.
पोताना स्वभावना आश्रयरूप धर्म तेणे एक सेकंड पण सेव्यो नथी.
कल्याण माटे शुं करवुं? के आत्मानी सन्मुख थईने आत्मानुं साचुं ज्ञान करवुं.
परना संगथी रहित एवा असंग चैतन्यस्वभावने अडीने–स्पर्शीने–अनुभवीने जे
ज्ञान थाय ते ज हितकर–सुखकर ज्ञान छे. आत्मा कांई संयोग जेटलो क्षणिक नथी, ते
तो सदाय टकनारो नित्य छे. पूर्वभवनुं शरीर छोडीने आ शरीरमां आव्यो, ते शरीरथी
भिन्न चेतनस्वरूपे नित्य छे. आवा स्वभावनुं ज्ञान करीने तेनी अंदर वसवुं ते
निजघरनुं साचुं वास्तु छे. भाई, तारा निजघरमां एवी कई खोट छे के तारे बहारथी
लाववुं पडे? तारा ज्ञान–आनंद वगेरे तारामां ज परिपूर्ण छे, तेमां पर्यायने एकाग्र
करतां ते प्रगटे छे. नवतत्त्वना विकल्पना आश्रये सम्यग्दर्शन थतुं नथी, परजीवनी दया
वगेरे शुभभावोना आश्रये सम्यक्चारित्र थतुं नथी; ए