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तो बधा पराश्रयभाव छे, ते बंधनुं कारण छे. मोक्षनुं कारण तो शुद्धआत्माना स्वाश्रये
छे. आवा निजघरमां जीव आवतो नथी ने परघरमां ज रखडी रह्यो छे. तेने
स्वाश्रयरूप मोक्षमार्ग वीतरागी संतोए समजाव्यो छे.
आत्मानी पोतानी आ वात छे एटले समजाय तेवी छे. जेनामां परवस्तु नथी,
राग नथी, एवा नित्यानंदरूप शुद्धआत्मानी सन्मुख थईने जे ज्ञान थाय ते ज
सम्यग्ज्ञान छे. तेनो आधार आत्मा ज छे, आत्माना आधारे तन्मय थयेलुं ज्ञान ते ज
सम्यग्ज्ञान छे. तेम ज सम्यग्दर्शन पण शुद्धआत्माना ज आश्रये छे, माटे शुद्ध आत्मा ते
ज सम्यग्दर्शन छे.–आधारआधेयने एक करीने सम्यग्दर्शनने शुद्धआत्मा कह्यो.
शुद्धआत्मा ते सम्यग्दर्शननो आश्रय होवाथी ते ज सम्यग्दर्शन छे. जुओ, सम्यग्दर्शनमां
विकल्पनो आश्रय नथी, परनो–देवगुरुनो आश्रय नथी, पर्यायना भेदनो आश्रय नथी.
अभेद एवा शुद्धआत्मानो आश्रय लईने तेमां एकताथी सम्यग्दर्शनादि थाय छे. आ
रीते शुद्धआत्माना आधारे अंदरथी आत्माना आनंदनो अवाज आवे एटले के
अनुभव थाय छे–ते सम्यग्दर्शन छे. प्रभु! तुं तारा घरमां अंदर जईने आत्माने
ढंढोळीने आवुं सम्यग्दर्शन प्रगट कर.
धर्मात्माने सम्यग्दर्शनमां शुद्धआत्मा ज समीप छे, विकल्प ते समीप नथी,
ते तो दूर छे–जुदो छे. ए ज रीते तेने सम्यग्ज्ञानमां ने सम्यक्चारित्रमां पण
शुद्धआत्मा ज समीप छे, पंचमहाव्रतना के शास्त्रभणतरना विकल्पो समीप नथी,
दूर छे–जुदा छे. ते विकल्पो वडे आत्मानी मोटाई नथी. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र
तेना वडे ज आत्मानी मोटाई छे, ने ते ज मोक्षनुं साधन छे. परना आश्रयवडे
आत्मानी मोटाई केम होय? परना आश्रये थयेला व्यवहार श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र ते
कांई मोक्षनुं कारण नथी, माटे तेनो तो मोक्षमार्गमां निषेध छे; अने शुद्धआत्माना
आश्रये थयेला निश्चय सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र मोक्षनुं कारण छे; ज्यां
शुद्धआत्मानो आश्रय होय त्यां नियमथी सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र होय छे, माटे ते
ज उपादेय छे,–ए परम जैनसिद्धांत छे.