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चैतन्यस्वरूप निजपद
हे जीव! आ शुद्धचैतन्यस्वरूप ज तारुं साचुं पद छे,
ए सिवाय बीजुं बधुंय अपद छे...अपद छे.
पंदर वरस पहेलांनी वात छे. ए वखते पं. जवाहरलाल नहेरुए भारतनी
कोंगे्रसना प्रमुखपदे, पोताने स्थाने सौराष्ट्रना श्री ढेबरभाईने नीमवानुं नक्की कर्युं, ते
समाचारथी घणा लोको ज्यारे आनंदनी हो–हा करता हता, त्यारे पू. गुरुदेवश्री कानजी
स्वामीए नीचेना उद्गार काढ्या हता–
लोकोने आ बहारना पदनो महिमा छे, पण अंदरना चैतन्यपदनी खबर नथी.
चैतन्यना भान विना, बहारमां मोटा मोटा प्रमुखपद के राज्यपद मळे तेमां आत्माने
शुं? ते तो बधुं अपद छे,–ए कांई जीवने शरणभूत नथी. जेने अंतरना पोताना
चैतन्यपदनुं भान नथी, तेनुं शरण लीधुं नथी तेने मरण टाणे कांई आ बहारनां पद
शरणभूत नहीं थाय. बहारमां मोटुं पद मळ्युं तेमां आत्मानुं शुं हित?–ते कांई
परभवमां साथे नहीं आवे. चक्रवर्तीपदना स्वामी पण आत्माना निजपदने भूलीने
सातमी नरके सीधाव्या छे, ने बहारनुं कोई पद न होय एवा जीवो पण निजपदने
साधीने मोक्ष पाम्या छे. बहारनुं पद कांई आत्मानुं पद नथी.
मारो आत्मा ज ज्ञानानंद परमात्मा छे,–हुं ज परमात्मा छुं, परमात्मपदनी
गादीए बेसवा माटे हुं लायक छुं. एम जेणे आत्माना चैतन्यपदने ओळख्युं ते मोटो
बादशाह छे; पोताना शुद्ध चैतन्यपदना सिंहासने जे बेठो ते बादशाहनो पण बादशाह
छे. पोताना चैतन्यपद पासे त्रणेलोकना पदने ते तृणसमान जाणे छे. त्रणकाळ–
त्रणलोकमां सौथी श्रेष्ठ–प्रधानपद आ शुद्ध चैतन्यधातु ज छे,–जेना ज्ञाननी आण
त्रासवगर त्रणकाळ त्रणलोकमां वर्ते छे.–आवा चैतन्यपदने ओळखवुं,–ते ज साचुं पद
छे. बाकी आ बहारनां पद ते तो थोथां छे, अपद छे. माटे हे जीव! तुं स्वपदने जाण.
उपरोक्त चर्चाना प्रसंगे गुरुदेवे धर्मात्मानुं उदाहरण आपीने कह्युं के जुओने,
आत्मानुं केवुं अलौकिक काम करे छे! ए तो भगवानना दीवान छे; बादशाहनां पण
बादशाह छे. (–नित्यनोंधमांथी)
(गुरुदेवे आ उद्गारो द्वारा बतावेली वस्तुस्थिति केवी स्पष्ट छे–ते शुं आजना
राजकीय वातावरणमां बताववुं पडे तेम छे? श्री ढेबरभाई गुरुदेव प्रत्ये प्रेम धरावे छे
ने ताजेतरमां आ मासमां ज तेओ सोनगढ दर्शन करवा आव्या.)