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ज्ञानस्वरूपने अनुभवनारा
जीवो मोक्षने साधे छे
निश्चयनो आश्रय करनारा, एटले के परथी भिन्न
ज्ञानस्वरूप पोताना आत्मानो अनुभव करनारा धर्मात्मा
जीवो ज मोक्षने पामे छे; अने जेओ एवा आत्माने नथी
अनुभवता, ने व्यवहारनो ज आश्रय करे छे तेवा कोई
जीवो कदी मोक्षने पामतां नथी.–जैनशासननो आ परम
सिद्धांत आचार्य भगवाने समयसारमां परिस्पष्टपणे
समजाव्यो छे; ने ए रीते मोक्षने साधवानो एक ज अफर
मार्ग जगतना जीवोने समजावीने उपकार कर्यो छे.
‘णिच्छयणयासिदा मुणिणो पावंति णिव्वाणं’ एटले के
निश्चयनयना आश्रये ज ज्ञानीओ निर्वाणने पामे छे माटे ते
आश्रय करवा जेवो छे, अने व्यवहारनय पराश्रित होवाथी
तेना आश्रये कोई जीवो मुक्ति पामता नथी माटे ते छोडवा
जेवो ज छे–एवुं वस्तुस्वरूप समयसार गा. २७२ थी
२७७मां खुल्लुं कर्युं छे; तेना उपरनुं पू. श्री कानजी स्वामीनुं
आ प्रवचन छे.
निश्चय एटले स्वाश्रय...ते मोक्षनुं कारण
आत्मानो सहज स्वभाव एकरूप शुद्ध छे, तेमां बंधन के परभाव नथी. आवो
सहज स्वभाव ते निश्चय छे, अने ते स्वभावनो आश्रय करवाथी ज मुक्ति थाय छे.
आवा शुद्धस्वभावनो आश्रय करतां परनो आश्रय छूटी जाय छे एटले परमां
एकताबुद्धिनो अध्यवसान छूटी जाय छे तेमज परना आश्रयरूप व्यवहार पण छूटी
जाय छे. आ रीते निश्चयना आश्रये व्यवहारनो त्याग ते मोक्षनुं कारण छे. आ
निश्चयनो आश्रय एटले के स्वभावनो आश्रय तेमां शुद्ध सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र
आवी जाय छे.
व्यवहार एटले पराश्रय...ते बंधनुं कारण
आवा निश्चयस्वभावना आश्रय वगर एकला पराश्रयरूप जे व्यवहार श्रद्धा–