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–ज्ञान–चारित्र ते कांई मोक्षनुं कारण नथी. व्यवहारनो आश्रय तो बंधनुं कारण छे.
निश्चय सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र के जे मोक्षनुं कारण छे तेनो आश्रय शुद्ध आत्मा
छे. निश्चयनयथी आत्मानुं शुद्धस्वरूप जाणीने तेना आश्रये श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र
करवा ते नियमथी मोक्षनुं कारण छे. एम करवाथी मोक्ष थाय छे, ने एना वगर
मोक्ष थतो नथी.
स्वद्रव्यना आश्रये मोक्ष थाय छे ने परद्रव्यना आश्रये संसार थाय छे,–ए
सिद्धांत छे. शुद्धआत्मानो अनुभव जेओ करता नथी, शुद्धआत्माना अनुभवथी थतुं जे
निर्विकल्प सुख तेनी जेने खबर नथी, जेओ परद्रव्यना आश्रये एकला शुभाशुभ
विकल्पोने ज अनुभवे छे, अने एवा पराश्रित व्यवहारने मोक्षनुं साधन माने छे,
तेओ मिथ्यात्वने सेवे छे. भाई, पराश्रयमां तो दुःख छे, आकुळता छे, कषाय छे.
चैतन्यस्वरूप आत्मा कषाय वगरनो छे, तेने कषायभावथी लाभ मनावे छे तेओ
वीतरागभावने पोषनारा नथी पण कषायने पोषनारा छे, एटले वीतरागशासनना ते
वेरी छे. परथी भिन्न शुद्ध ज्ञानमय आत्माने जेओ अनुभवे छे तेओ ज वीतराग
शासनने समजीने मोक्षने साधे छे.
* निश्चयनय केवो छे?–के आत्माना शुद्धस्वभावना आश्रयरूप छे, अने मोक्षनुं
कारण छे.
* व्यवहारनय केवो छे? परना आश्रयरूप छे अने बंधनुं कारण छे.
–माटे मुमुक्षु जीवे परद्रव्यो ने परभावोथी भिन्न एवा पोताना एक ज्ञानभावने
जाणीने तेनो आश्रय करवो; अने पराश्रये थता समस्त परभावोने पोताथी भिन्न
जाणवा. आ रीते निश्चयनो आश्रय करवो ने व्यवहारनो आश्रय छोडवो ते मोक्षनुं
कारण छे.
शुद्धात्माना श्रद्धा–ज्ञान वगर सम्यक्चारित्र होतुं नथी
निश्चय चारित्र वीतरागभावरूप छे; ते मोक्षनुं कारण छे.
शुद्धात्माना आश्रये एकाग्रता ते निश्चय चारित्र छे. अने आवा निश्चयचारित्रनुं
कारण सम्यग्दर्शन–ज्ञान छे.
ते सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान पण शुद्धात्माना ज श्रद्धा–ज्ञानरूप छे.
शुद्धआत्माना श्रद्धा–ज्ञान वगर कदी निश्चय चारित्र होतुं नथी. पंचमहाव्रत–तप वगेरेनो