छतां, शुद्धात्माना श्रद्धा–ज्ञान न होवाथी, साचुं चारित्र होतुं नथी.
तोपण ते जीव चारित्र वगरनो ज छे; मोक्षना कारणरूप सम्यक्चारित्रनी तेने खबर
नथी, अने शुभरागने ते मोक्षनुं कारण समजे छे. व्यवहारचारित्र होवा छतां तेने
मुक्ति थती नथी–ए द्रष्टांत आपीने आचार्यदेव एम सिद्धांत समजावे छे के पराश्रित
एवुं व्यवहारचारित्र ते मोक्षनुं कारण नथी; शुद्धात्मामां एकाग्रतारूप जे निश्चयचारित्र
छे ते ज मोक्षनुं कारण छे.–माटे मोक्षार्थी जीवे निश्चयनो आश्रय करवो ने व्यवहारनो
आश्रय छोडवो. परना आश्रये थता रागनो कोई अंश मोक्षनुं साधन नथी; स्वभावना
आश्रये थतो वीतरागभाव ज मोक्षनुं साधन छे. माटे मोक्षार्थी जीवे स्वभावनो आश्रय
करवो ने परनो आश्रय छोडवो.–ए सिद्धांत छे.
श्रद्धा–ज्ञान–अनुभवमां लीधा वगर जे एकला शास्त्रोने भणी जाय छे तो तेनुं
ज्ञान पण पराश्रयमां अटकेलुं छे, तेने शुद्धआत्मानुं ज्ञान न होवाथी सम्यग्ज्ञान
नथी, तेनुं बधुंय जाणपणुं अज्ञान छे, ते कांई मोक्षनुं कारण नथी. भले ११ अंग
भण्यो पण जो शुद्धआत्मानो आश्रय न कर्यो तो ते जीव शास्त्र भणवाना गुणने
पाम्यो नथी, एटले के शास्त्रोए जेवो ज्ञानस्वरूप आत्मा कह्यो छे तेवो तेणे जाण्यो
नथी. परभावोथी भिन्न ज्ञान–आनंदमय शुद्ध आत्मवस्तुनुं ज्ञान ते
शास्त्रभणतरनो सार छे, एना वगरनुं शास्त्र भणतर ते निःसार छे. एवा
शास्त्रभणतर वडे कांई सम्यग्ज्ञान थतुं नथी. सम्यग्ज्ञान शुद्धआत्माना आश्रये छे,
कांई शास्त्रना आश्रये ज्ञान नथी. शास्त्रना आश्रये तो पराश्रयभावरूप विकल्प
थाय छे, ते कांई मोक्षनुं कारण नथी.