Atmadharma magazine - Ank 316
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : : महा : २४९६
नथी थती. धर्मीनी ज्ञानचेतना कोई परना आश्रये परिणमती नथी, शुद्धस्वद्रव्यना
आश्रये ज्ञानचेतना परिणमी छे. ते चेतना विकल्परूप नथी, रागरूप नथी, शास्त्रनां
अवलंबनरूप नथी, ते तो शुद्ध–ज्ञानरूप परिणमेली छे. शुद्धआत्माने चेतनारी आवी
चेतना रागवडे–विकल्पवडे ओळखाय नहीं, चैतन्यसूर्य आत्मा, अनंतकिरणोथी
झगझगतो ज्ञानसूर्य, तेमांथी धर्मीनी ज्ञानचेतना प्रकाशमान थई छे, बीजा कोईनुं
अवलंबन तेने नथी.
जेओ रागने मोक्षनुं कारण माने छे तेओ मोक्षने श्रद्धता नथी
शुद्धज्ञानस्वरूप आत्मा जेणे जाण्यो नथी ते ज पराश्रित शुभरागने मोक्षनुं
कारण माने छे. अहीं तो कहे छे के रागने मोक्षनुं कारण माननारा जीवोने खरेखर
मोक्षनी ज श्रद्धा नथी. मोक्षनी खरी श्रद्धा क्यारे थाय? के ज्ञानस्वरूप आत्माने जाणे
त्यारे मोक्षनी श्रद्धा थाय. आत्मा स्वयं ज्ञानमय छे, ने तेनी मोक्षदशा पण
शुद्धज्ञानमय छे, ते कांई रागमय नथी. मोक्ष ते ज्ञानस्वरूप आत्माना ज आश्रये
थयेली दशा छे, ते कांई पराश्रये थती नथी. जेओ पराश्रयभावने ज अनुभवे छे ने
तेनाथी भिन्न ज्ञानमय आत्माने अनुभवता नथी तेओ मोक्षने के मोक्षना कारणने
जाणता नथी, एटले तेने मोक्षनी ज श्रद्धा नथी. तेओ तो बंधना कारणने ज
(व्यवहारना आश्रयने ज) मोक्षनुं कारण मानीने सेवी रह्या छे. भले तेओ घणां
शास्त्रो भणे, पण शास्त्रनो आश्रय छोडीने ज्ञानस्वभावनो आश्रय करता नथी तेथी
तेओ अज्ञानी ज रहे छे. शास्त्रभणतरनुं फळ तो ए हतुं के भिन्न वस्तुस्वरूप
ज्ञानमय आत्माने ज्ञानथी चेतवो, अनुभववो. एवा ज्ञान वगरनुं ११ अंगनुं
भणतर पण गुण वगरनुं छे. शास्त्र भणवानो गुण तो त्यारे कहेवाय के रागथी पार
अंदरनी चेतना वस्तुने ज्यारे संचेते. केमके शास्त्रो एवा शुद्धआत्माने बतावे छे.
एकत्व–विभक्त एवो शुद्धआत्मा दर्शाववा माटे आचार्यदेवे आ समयसार रच्युं छे.
अहो! समयसारमां निजवैभवथी आचार्यदेवे शुद्ध आत्मा देखाडयो छे. आ
समयसार तो भरतक्षेत्रनो भूप छे.
ज्ञानचेतना क््यारे ऊघडे?
अरे, राग अने ज्ञाननी भिन्नता जेने न भासी एनां ते शास्त्रभणतर शा
कामनां? रागथी भिन्नता वगरनुं ज्ञान–एने ज्ञान कोण कहे? ए तो अज्ञान छे.
शास्त्रोनी वाणी तरफना वलणथी कांई ज्ञानचेतना ऊघडती नथी, ज्ञानभंडारथी
भरेलो