Atmadharma magazine - Ank 316
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: २० : : महा : २४९६
जीवने धर्ममां मद
ित्रत्र

भगवान ऋषभदेव पहेला तीर्थंकर थया, भरतजी पहेला चक्रवर्ती थया;
अजितनाथ बीजा तीर्थंकर थया, अने त्यारपछी सगर नामना बीजा चक्रवर्ती थया; ते
सगर चक्रवर्तीनी आ वात छे.
ते सगर चक्रवर्ती पूर्वभवे विदेहक्षेत्रमां जयसेन नामना राजा हता; तेने
पोताना बे पुत्रो उपर घणो ज स्नेह हतो; तेमांथी एक पुत्रनुं मरण थतां ते राजा
शोकथी मुर्छित थई गया; ने पछी शरीरने दुःखनुं ज घर समजीने जन्म–मरणथी छूटवा
माटे दीक्षा लईने मुनि थया; तेमना साळा महारूते पण तेमनी साथे दीक्षा लीधी; बीजा
हजारो राजा दीक्षा लईने मुनि थया. अने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप शुद्ध मोक्षमार्गने
साधवा लाग्या.
जयसेन अने तेमना साळा महारूत ए बंने मुनिओ समाधिमरणपूर्वक देह
छोडीने १६ मा अच्युतस्वर्गमां देव थया. तेओ एकबीजाना मित्र हता, तेथी तेमणे
एकबीजा साथे एवी प्रतिज्ञा करी के–आपणा बेमांथी जे पहेला पृथ्वी पर अवतरीने
मनुष्य थाय, तेने बीजो देव प्रतिबोध पमाडे, एटले के तेने संसारनुं स्वरूप समजावीने
दीक्षा लेवानी प्रेरणा करे. आ रीते धर्ममां मदद करवा माटे बंने मित्रोए एकबीजा साथे
प्रतिज्ञा करी. खरूं ज छे–जीवने संसारमां साचो मित्र ते ज छे के धर्ममां जे मदद करे.
हवे तेमांथी जयसेन राजानो जीव बावीस सागरोपम सुधी देवलोकना सुखो
भोगवीने, आयुष्य पूर्ण थतां मनुष्यलोकमां अवतर्यो. अयोध्यानगरी–के ज्यां
अगाउना बे तीर्थंकरो तेमज प्रथम चक्रवर्ती अवतरी चुक्या हता, ते नगरीमां
ईक्ष्वाकुवंशी राजा समुद्रविजयना पुत्र तरीके ते अवतर्यो; तेनुं नाम सगरकुमार. ते
सगरकुमार बीजा चक्रवर्ती थया, अने छ खंड उपर राज करवा लाग्या, अत्यंत
पुण्यवान साईठ हजार पुत्रोथी ते शोभता हता; ते पुत्रो उपर तेने घणो स्नेह हतो.
तेनो मित्र मणिकेतु हजी स्वर्गमां ज हतो.