ज जीवे छे. आयुष्य पूरुं थतां यमराज तेनो नाश करे छे अर्थात् तेनुं मरण थाय छे.
माटे मरणरूप यमराजने जो तमे जीतवा चाहता हो तो शीघ्र सिद्धपदने साधो. आ
जीर्णशीर्ण शरीरनो मोह के पुत्रनो शोक छोडीने मोक्षनी प्राप्ति माटे तत्पर थाओ ने
जिनदीक्षा धारण करो. घरमां पड्या रहीने बुढा थवा करतां दीक्षा लईने मोक्षनुं साधन
करो.
खरेखर साची होय तो मारी वात आप सांभळो. जो यमराजथी बळवान कोई नथी
एटले के मृत्युथी कोई बची शकतुं नथी–एम तमे कहो छो, तो हुं तमने जे समाचार कहुं
ते सांभळीने तमे पण भयभीत न थशो; तमे पण संसारथी वैराग्य लावी मोक्षने
साधवा तत्पर थजो.–एम कहीने तेणे कह्युं: हे राजन्! सांभळो! कैलास गयेला तमारा
६० हजार पुत्रो बधाय मृत्यु पाम्या छे. एक साथे ६० हजार पुत्रोनो कोळियो करी
जनार आवा दुष्ट यमराजने जीतवा माटे मारी जेम तमारे पण मोह छोडीने शीघ्र दीक्षा
लेवी जोईए ने मोक्षनुं साधन करवुं जोईए.
हजार राजकुमारोनुं एक साथे मरण थवानी वात तेनाथी सांभळी शकाय नहि, ते
सांभळतां ज तेने मुर्च्छा आवी गई. पण–ते राजा आत्मज्ञानी हतो. थोडीवारे
मुर्छामांथी भानमां आवतां ज तेणे विचार्युं के अरे! नकामो खेद शा माटे? खेद करनारी
एवी आ राजलक्ष्मी के कुटुंब–परिवार कंई पण मारुं नथी, हवे मने तेनो कोईनो मोह
नथी. हुं तो ज्ञानदर्शनथी परिपूर्ण तत्त्व छुं, बीजुं कांई आ जगतमां मारुं नथी. हुं व्यर्थ
मोहमां फसायो...हवे तेनो मोह छोडीने हुं जिनदीक्षा लईश ने अशरीरी मोक्षपदने
साधीश. शरीर अपवित्र छे ने विषयभोगो क्षणभंगुर छे–एम जाणीने, ऋषभादि
तीर्थंकरो तेने छोडीने वनमां चाल्या गया ने चैतन्यमां लीन थईने केवळज्ञान पाम्या. हुं
पण हवे तेमना ज मार्गे जईश. हुं मूर्ख अत्यार सुधी विषयोमां डुबी रह्यो, हवे एक
क्षण पण आ संसारमां रहेवुं नथी.