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* उपयोगस्वरूप जीव
निजभावनो कर्ता छे *
चेतनागुणथी सदा जीवनारो जीव छे, ते उपयोगस्वरूप जीव छे. पर्यायमां
उपयोगना विशेष मतिज्ञान वगेरे रूप छे, पण स्वभावशक्तिथी दरेक आत्मा
सर्वज्ञस्वभावथी परिपूर्ण छे. आवो उपयोगस्वरूप आत्मा, तेने कर्तापणुं कया प्रकारे
छे? ते समजावे छे.
उपयोगस्वरूप आत्माने खरेखर परभावोनुं कर्तृत्व नथी, पण पोताना
निजभावोनो ते कर्ता छे. आत्माना निजभाव एटले औपशमिकादि भाव, तेनो ते कर्ता
छे. पण पोताना अस्तित्वथी भिन्न एवा शरीरादिने ते करतो नथी. जीवे अज्ञानथी शुं
कर्युं? के अज्ञान अने शुभ–अशुभ उदयभावो कर्या; देहने पोतानो मानीने
मिथ्यात्वभावनो कर्ता थयो पण देहनो कर्ता न थयो. पोताना अस्तित्वमां जे न होय
तेने आत्मा करी शके नहीं. परना अस्तित्वमां आ आत्मा नथी, तो आ आत्मा तेने शुं
करे? ज्ञानभावे पोताना निर्मळ औपशमिक–क्षायिकादि भावने जीव करे छे.
जीवनो पारिणामिकभाव अनादिअनंत छे.
जीवनो क्षायिकभाव सादि–अनंत छे.
जीवना औपशमिकादि भावो सादि–सांत छे.
सर्वज्ञदेवे जोयेलां जे पांच अस्तिकाय, तेमनुं अस्तित्व भिन्नभिन्न छे. आत्मा
पोताना अस्तित्वमां पोतानी पर्यायने करे छे, पोतानी पर्याय ते पोतानो भाव छे,
तेनो आत्मा कर्ता छे, पण अन्य पदार्थना भावनो कर्ता आत्मा नथी. शरीरनी कोई
क्रिया आत्मानी नथी, केमके ते शरीरनी क्रियानुं अस्तित्व जीवमां नथी पण
पुद्गलास्तिकायमां तेनुं अस्तित्व छे.
आत्मानी सत्ता पोताना उत्पाद–व्यय–ध्रुवमां समाप्त थाय छे; एटले तेनुं
कर्तापणुं पण पोताना ज अस्तित्वमां छे, परभावमां तेनुं कर्तृत्व नथी. अने पोताना
भावमां पोते तदाकाररूपे परिणमे छे, अहीं रागादिक परिणाम ते पण आत्माना भाव
छे केमके ते आत्माना अस्तित्वमां छे; जोके शुद्ध निश्चयथी आत्माने रागादिभावनुं
कर्तृत्व नथी, पण तेनी पर्यायमां ते थाय छे तेथी तेनो कर्ता व्यवहारे छे.