उदयभावो छे, तेनो अल्पकाळमां अभाव थई जशे; अने सम्यक्त्वमां क्षायिकभाव छे.
संसारमां बधा जीवोने पारिणामिकभाव अने उदयभाव होय छे; ते उपरांत छद्मस्थ
जीवोने बधाने क्षायोपशमिकभाव होय छे, तथा कोईने उपशम के क्षायिकभाव पण होय
छे. सिद्धोने पारिणामिक अने क्षायिक बे भावो ज होय छे. जीवना सद्भावमां आवा
भावो होय छे; जीवना भावोनो कर्ता जीव छे, बीजो तेनो कर्ता नथी, तेमज जीव
बीजाना भावोनो कर्ता नथी. जीवना आवा स्वतंत्र अस्तित्वने अने तेना भावोने
ओळख्या वगर जीवतत्त्वनुं साचुं ज्ञान थाय नहीं.
अभाव छे.
पर्यायस्वरूप छे. अनादि–अनंत एवो पारिणामिकभाव तो द्रव्यअपेक्षाए छे, अने
सादिसांत के सादिअनंत (औपशमिक के क्षायिकादि) चार भावो ते पर्यायअपेक्षाए छे;
ते ते समयना भावमां जीव पोते तदाकाररूप परिणमे छे, आ रीते पांचभावरूप जीव
स्वयं परिणमे छे, तेथी तेने पोताना भावनुं कर्तापणुं छे. पारिणामिकभाव जे सदा
एकरूप छे ते पोते मोक्ष, मोक्षमार्ग के बंधरूप नथी; बंध, मोक्ष के मोक्षमार्ग ते रूप चार
भावो पर्यायमां छे. एक भाव द्रव्यरूप, अने चार भाव पर्यायरूप,–आवा पांचभावरूप
जीव छे, ते पोतानी पर्यायमां पोताना भावनो कर्ता छे. ते पोताना स्वभावना आश्रये
वीतरागभावरूप परिणमे–एनुं नाम जैनशासन छे, ते धर्म छे.
अनादिअनंतपणुं छे. तेने ज बीजा भावोनी अपेक्षाथी सादि–सांतपणुं के सादि–
अनंतपणुं संभवे छे. जेमके जीवने औदयिकभावरूप मनुष्यपणुं के देवपणुं ते सादि–सांत
छे; अने सिद्धदशारूप क्षायिकभाव सादि–अनंत छे. पण आवा सादि–सांत, सादि–अनंत
के अनादि–अनंत ए भावो जीवना पोताथी ज छे, कोई बीजाना कारणे नथी.–एम
स्वाधीन अस्तित्वथी जीवने ओळखवो जोईए. जेम समुद्र समुद्रपणे कायम रहीने तेना
जळमां