: महा : २४९६ : २९ :
तरंगो ऊपजे–विणसे छे, तेम जीववस्तु पोते द्रव्यपणे नित्य होवा छतां तेनामां
पर्यायरूप तरंगो उत्पाद–व्ययने पामे छे; आवुं जीवनुं अस्तित्व छे.
जीवनां छ कारको जीवमां, ने पुद्गलकर्मना छए कारको पुद्गळमां. बंनेनुं
अत्यंत जुदापणुं छे;–ए वात ६२मी गाथामां कही छे. अनादि–अनंत एवा जीवने
पर्यायमां कोई भावनी अपेक्षाए सादि–सांतपणुं होवामां विरोध नथी, तेमज कोई
भावनी अपेक्षाए सादिअनंतपणुं पण संभवे छे. परंतु परचीजनुं अस्तित्व तो
आत्मामां एकसमय पण संभवतुं नथी, तेनुं तो सदाय भिन्नपणुं ज छे.
भाई! तुं तारा अस्तित्वमां देख...तारा अस्तित्वमां कया भावो तने हितरूप
छे? ने कया भावो हितरूप नथी? तेने जो. परना अस्तित्वमां तारुं कांई नथी, ने तारा
अस्तित्वमां परचीज नथी. आत्माने द्रव्यअपेक्षाए सादिसांतपणुं छे; क्षायिकभाव–
अपेक्षाए सादिअनंतपणुं छे. आवा भावोवाळुं आत्मानुं अस्तित्व छे.
वस्तुनो भाव वस्तुमां होय छे, बहार नथी होतो. सोनानो भाव कांई रूपियामां
नथी. सोनानो भाव तो सोनामां ज छे, सोनानी जे पीळाश–चीकाश–वजन छे ते तेनो
भाव छे, तेम आत्मानो भाव आत्मामां छे; ज्ञान–सम्यग्दर्शन–सुख वगेरे आत्माना
भावो छे; वस्तुना भावो वस्तुथी जुदा होता नथी. आत्मानो कोई भाव शरीरमां न
रहे; आत्मामां ज होय. उदयभावना २१ प्रकार के क्षायिकभावना ९ प्रकार, ए बधा
भावो जीवथी पोताथी छे, कोई बीजाने लीधे नथी. निमित्त अपेक्षाए चारभावोने
कर्मकृत व्यवहारे कह्या, पण निश्चयथी जीवना भावमां कर्मनुं कारकपणुं नथी. जीवनां
कारक जीवमां, ने कर्मनां कारक कर्ममां–एम बंनेनुं सर्वत्र जुदापणुं छे. जीवनी
अवस्थामां औदयिक क्षायिक वगेरे भावो थाय तेमां कर्मना उदय–क्षय वगेरे निमित्त
होवा छतां, पोताना ते भावनो कर्ता जीव पोते ज छे, बीजो तेनो कर्ता नथी केमके ते
भावो जीवना ज अस्तित्वमां छे–एम जाणवुं.
* भगवत धर्म सूक्ष्म छे, अर्थात् सर्वज्ञनो वीतरागधर्म सूक्ष्म छे; राग तो स्थूळ
परिणाम छे, तेना वडे भगवत् धर्म पमातो नथी. सूक्ष्म एवो भगवत् धर्म–वीतराग
धर्म ते तो सूक्ष्म–अतीन्द्रिय ज्ञानवडे ज पमाय छे.
* रे जीव! रत्नत्रयना सुंदर पुष्पोथी खीलेला तारा चैतन्य बागमां
पांचईन्द्रियविषयोरूपी ऊंटडाने तुं छूटो न मुकीश, नहितर ते ऊंटडा तारा उत्तम
चैतन्यबागने उज्जड करी नांखशे. सम्यक्त्व सहितना उत्तम वैराग्यरूपी वाडथी तारा
चैतन्यबागनी रक्षा करजे.