: महा : २४९६ : ३ :
ज्ञान ने आनंद आत्माथी जुदा नथी. ज्यां आत्मा छे त्यां ज आनंद छे, ज्यां आत्मा छे
त्यां ज ज्ञान छे, ज्यां ज्ञान ने आनंद छे त्यां ज आत्मा छे. आ रीते आत्मा पोताना
भावोथी जुदो नथी. आवा आत्मानी अंदर अनंत आनंदना निधान पड्या छे. तेनी
स्वानुभूति थतां आनंद आवे, ते द्वारा आत्मा प्रकाशे छे के ‘हुं आवो छुं’ .
(त्रणचार हजार माणसो जिज्ञासाभर आत्मतत्त्वनी स्वानुभूतिनी आ वात
सांभळी रह्या हता; त्यारे ३७ वर्ष पहेलांना ए द्रश्यो ताजा थता हता के ज्यारे ४३
वर्षनी वयना गुरुदेव आ भोजनशाळाने लाउडस्पीकर वगर पण आत्मप्रवचनथी
गजावता हता, ने आखी भोजनशाळा श्रोताजनोथी उभराई जती.)
गुरुदेव कहे छे के हे भाई! तारी दशाने स्व तरफ वाळीने अंतरमां जो. बहारना
शरीरनुं खोखुं ते तुं नथी. अंदर चैतन्यस्वरूप आत्मा आनंदनो कंद छे, ते कांई
शरीररूप थयो नथी. स्वानुभूति वडे ज आवो आत्मा जणाय छे.–आ वात परमेश्वरना
प्रतिनिधि एवा संतोए जाते अनुभवीने शास्त्रमां फरमावी छे. रागथी पार एवी
अंतरनी स्वानुभूति वडे तारो आत्मा तने प्रत्यक्ष थशे.–आवो अनुभव थाय त्यारे
आत्मामां आनंदना दरिया डोली ऊठे...त्यारे सम्यग्दर्शन थाय ने धर्म थयो कहेवाय. ते
जीव भगवानना मार्गमां भळ्यो.
आ तरफ आवो
चैतन्यतत्त्वने अनुभववामां जे जागृत नथी
ने रागना ज अनुभवमां लीन थईने सूता छे–ऊंघे
छे, एवा अंध प्राणीओने जगाडीने आचार्यदेव कहे
छे के अरे जीवो! तमे जागो...ने तमारा चैतन्यमय
तत्त्वने रागथी अत्यंत भिन्न देखो. रागमां तमारुं
निजपद नथी, तमारुं निजपद चैतन्यमां ज छे, तेने
तमे देखो...देखो. राग तरफ अनादिथी दोडी रह्या
छो, त्यांथी पाछा वळो...पाछा वळो...पाछा वळो,
ने आ अंतरना चैतन्यपद तरफ आवो...आ तरफ
आवो. तमारा आ शुद्ध चैतन्यपदने देखीने
आनंदित थाओ.