Atmadharma magazine - Ank 316
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : : महा : २४९६
कदी न सांभळेली वात
जामनगर शहेरमां पू. श्री कानजी स्वामीनां प्रवचनोमांथी
(वीर. सं. २४९६ माह सुदी १ थी ७ सुधी)
* * * * *
आत्मा देहथी भिन्न चैतन्यतत्त्व छे, ते सर्वज्ञ स्वभावथी परिपूर्ण छे. तेने
ओळखी तेमां एकाग्र थतां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र अने केवळज्ञान प्रगट थाय छे;
तेने भगवान परमात्मा कहेवाय छे.
जेम लींडीपीपरमां तीखाश छे तेम दरेक आत्मामां सर्वज्ञ थवानी ताकात भरी
छे. आवो स्वभाव पोतामां होवा छतां अज्ञानी जीवे तेनो अनुभव, तेनो परिचय के
तेनुं यथार्थ श्रवण पूर्व कदी कर्युं नथी. अने एवो स्वभाव देखाडनारा ज्ञानीओनो संग
पण तेणे कदी कर्यो नथी. तेथी सुलभ होवा छतां पोताना स्वभावनी वात तेने दुर्लभ
थई पडी छे.
ते दुर्लभ एवुं एकत्व–विभक्त स्वरूप आचार्य भगवाने आ समयसारमां
बताव्युं छे. अरे जीव! आत्माना शुद्ध निजानंद स्वरूपनो भोगवटो छोडीने,
शुभाशुभभावरूप ईच्छानी ने भोगवटानी तथा बंधननी ज वात सांभळी छे ने तेनो
ज प्रेम कर्यो छे. पण आत्माना स्वभावमां जे अनंतगुणनो निजवैभव छे तेनी प्रीति
कदी करी नथी.
शरीर ने आत्मानो जे संयोग छे तेमां शरीर तो अजीवपणे ज रह्युं छे, ने
आत्मा पोताना चेतनभावपणे ज रह्यो छे. शरीर अजीव मटीने जीवनुं नथी थयुं, ने
जीव पोते चेतन मटीने कदी जड थयो नथी.
शरीरनो संयोग तो छूटी जाय छे ने आत्मा कायम रहे छे; जो शरीर आत्मानुं
होय तो आत्माथी जुदुं पडे ज नहीं. ज्ञान ते आत्मानुं स्वरूप छे, ते कदी आत्माथी जुदुं
पडतुं नथी.
ज्ञानस्वरूप आत्मा शरीरथी जुदो छे, ने शुभ–अशुभ (पुण्य–पाप) भावोथी