Atmadharma magazine - Ank 317
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 10 of 57

background image
: फागण: २४९६ आत्मधर्म : ७ :
केम थाय ते ज वात छे; एना सिवाय बधुं थोथेथोथां छे. आवा ज्ञायकस्वरूप आत्माने
द्रष्टिमां लईने तेनो अनुभव करतां सम्यग्दर्शन थाय छे. आवा आत्माने स्वानुभवथी
हे शिष्य! तुं जाण. तेने जाणतां जन्म–मरण छूटी जशे ने परम आनंद थशे, केमके ते
ज्ञायकतत्त्व जन्म–मरण वगरनुं छे. अने आनंदथी भरेलुं छे, तेथी तेना अनुभववडे
जन्म–मरण छूटी जाय छे ने आनंद प्रगटे छे.
शुभ–अशुभभावो ते आत्मानी अशुद्धदशा छे, पर्यायमां ते अशुद्धता छे; पण
एक ज्ञायकभावरूप आत्माने लक्षमां लईने तेना शुद्धस्वभावने जोतां ते शुभ के
अशुभरूप थयो नथी, ज्ञायकभावरूप ज छे. आवुं ज्ञायकस्वरूप पोतानुं ज छे, ने
पोताने ते समजी शकाय तेवुं छे, तेथी संतोए ते समजाव्युं छे. पण ते समजवा माटे
अंदरथी बीजा भावोनो प्रेम छूटी जवो जोईए. पूर्वना असत्यना आग्रह छोडीने पात्र
थईने सत्समागमे प्रयत्न करे तो जरूर समजाय तेवुं छे. अने समजतां आनंद थाय
एवी आ चैतन्यवस्तु छे.
अनादिथी पोताना साचा स्वरूपने भूलीने, पुण्य–पाप साथे एकपणे ज
आत्माने अनुभव्यो छे, पण जो अंतरमां एकरूप ज्ञायकभावनी समीप जईने, तेमां
एकाग्र थईने अनुभव करे तो भगवान आत्मा पुण्य–पापथी जुदो अनुभवाय छे, तेने
ज शुद्धआत्मा कहेवाय छे. आ रीते पुण्य पापथी भिन्नपणे शुद्ध आत्माने उपासवो,
अनुभववो, ते मोक्षनुं कारण छे. आ ज दुःखथी छूटवानो उपाय छे.
भगवान आत्मा तो आनंदनो उत्पन्न करनारो छे, ते कांई पुण्य–पापरूप
कषायचक्रने उत्पन्न करनारो नथी. अवस्था अपेक्षाए जुओ तो पुण्य–पापने उत्पन्न
करनारा शुभाशुभभावो ते–रूपे आत्मा परिणम्यो छे, पण द्रव्यना स्वभावथी
जुओ तो भगवान आत्मा तो एक ज्ञायकभाव ज छे, ते शुभ के अशुभरूप कदी
थयो ज नथी.–आवो आत्मा लक्षमां लेवो ते सम्यग्दर्शन छे; कोई भेद–भंग विकल्प
तेमां नथी.
शुभ–अशुभ भावोमां चैतन्यनो प्रकाश नथी, चैतन्यमांथी तेनी उत्पति थई
नथी, अने ते शुभाशुभभावोमांथी चैतन्यनी उत्पत्ति थती नथी. शुभाशुभभावो ते
पुण्य–पापरूप संसारने उत्पन्न करनारा छे, तेनाथी कांई आत्मानो चैतन्यप्रकाश
खीलतो नथी. माटे चेतनभावथी ते शुभ–अशुभराग जुदो ज छे. रागथी भिन्न
चेतनवस्तु