द्रष्टिमां लईने तेनो अनुभव करतां सम्यग्दर्शन थाय छे. आवा आत्माने स्वानुभवथी
हे शिष्य! तुं जाण. तेने जाणतां जन्म–मरण छूटी जशे ने परम आनंद थशे, केमके ते
ज्ञायकतत्त्व जन्म–मरण वगरनुं छे. अने आनंदथी भरेलुं छे, तेथी तेना अनुभववडे
जन्म–मरण छूटी जाय छे ने आनंद प्रगटे छे.
अशुभरूप थयो नथी, ज्ञायकभावरूप ज छे. आवुं ज्ञायकस्वरूप पोतानुं ज छे, ने
पोताने ते समजी शकाय तेवुं छे, तेथी संतोए ते समजाव्युं छे. पण ते समजवा माटे
अंदरथी बीजा भावोनो प्रेम छूटी जवो जोईए. पूर्वना असत्यना आग्रह छोडीने पात्र
थईने सत्समागमे प्रयत्न करे तो जरूर समजाय तेवुं छे. अने समजतां आनंद थाय
एवी आ चैतन्यवस्तु छे.
एकाग्र थईने अनुभव करे तो भगवान आत्मा पुण्य–पापथी जुदो अनुभवाय छे, तेने
ज शुद्धआत्मा कहेवाय छे. आ रीते पुण्य पापथी भिन्नपणे शुद्ध आत्माने उपासवो,
अनुभववो, ते मोक्षनुं कारण छे. आ ज दुःखथी छूटवानो उपाय छे.
करनारा शुभाशुभभावो ते–रूपे आत्मा परिणम्यो छे, पण द्रव्यना स्वभावथी
जुओ तो भगवान आत्मा तो एक ज्ञायकभाव ज छे, ते शुभ के अशुभरूप कदी
थयो ज नथी.–आवो आत्मा लक्षमां लेवो ते सम्यग्दर्शन छे; कोई भेद–भंग विकल्प
तेमां नथी.
पुण्य–पापरूप संसारने उत्पन्न करनारा छे, तेनाथी कांई आत्मानो चैतन्यप्रकाश
खीलतो नथी. माटे चेतनभावथी ते शुभ–अशुभराग जुदो ज छे. रागथी भिन्न
चेतनवस्तु