Atmadharma magazine - Ank 317
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : फागण : २४९६
छे ते चेतनपणुं छोडीने रागरूप थई जती नथी.–आवी वस्तुने द्रव्यस्वभावथी शुद्ध
देखवी ते सम्यग्दर्शन छे, तेमां आनंदनुं वेदन छे.
आत्मा स्पष्ट–प्रकाशमान ज्योति छे, एटले पोते पोताना ज्ञानद्वारा प्रत्यक्ष
वेदाय एवो छे. आवुं प्रत्यक्ष स्वसंवेदन करे त्यारे ज सम्यग्दर्शन थाय छे.
(जामनगर–प्रवचन : माह सुद ६ गा. ६)
* रे जीव! तारे मोक्षमार्गी थवुं छे ने!
तो संसारमार्गी जीवो करतां मोक्षमार्गी जीवोनां
लक्षण तद्न जुदां होय छे. माटे प्रतिकूळता
वगेरे प्रसंग आवतां तुं संसारी जीवोनी जेम न
वर्तीश, पण मोक्षमार्गी–धर्मात्माओनी प्रवृत्ति
लक्षमां लईने ते रीते वर्तजे; मोक्षमार्गमां द्रढ
रहेजे...मोक्षमार्गी धर्मात्माओना जीवनने तारा
आदर्शरूपे राखजे.
* भाई, जीवनमां प्रतिकूळताना नाना–
मोटा प्रसंगो तो आवशे, कोई मान–अपमानना
प्रसंगो आवशे, पण एवा प्रसंगे तारा ज्ञान–
वैराग्यना बळे तारा मोक्षमार्गने तुं साचवी
राखजे. प्रतिकूळताना प्रसंगे मोक्षमार्गथी डगी
न जईश. पण, हुं तो मोक्षमार्गी छुं, मारे तो
मोक्षने साधवो छे–एम द्रढता वडे सहनशील
बनजे. एवा प्रसंगे जो तुं पण साधारण संसारी
जीवोनी जेम ज वर्त तो तेनामां ने तारामां फेर
शुं पड्यो? संसारना जीवो करतां मोक्षने
साधनारा जीवोना परिणामनी धारा तद्न जुदा
प्रकारनी होय छे.