: फागण: २४९६ आत्मधर्म : ९ :
राग तारुं स्वरूप नथी
गुरुदेव जामनगर पधार्या त्यारे चेला गामे पण पधार्या
हता. चेला ते जीवराजजी महाराजनुं वतन छे. त्यांनी
ग्राम्यजनता समक्ष गुरुदेवे करेलुं सहेलुं प्रवचन अहीं आप्युं छे.
(महासुद छठ्ठ: समयसार कळश १८३) प्रवचन पछी गामना ९०
वर्षना आगेवान श्री लखमशी दादाए पोतानो प्रमोद व्यक्त
करतां कह्युं के आपना प्रतापे अमारुं चेला तो आजे मुंबई शहेर
जेवुं बनी गयुं छे; आत्मानी आवी वात ९० वर्षमां आजे पहेल
वेली सांभळी.
णमो अरिहंताणं एटले आत्मामां जे अज्ञान अने राग–द्वेषरूपी शत्रु हता तेने
हणीने जेओ सर्वज्ञ वीतराग थया ते अरिहंत भगवान छे. अत्यारे विदेहमां एवा
अरिहंत परमात्मा सीमंधर भगवान वगेरे बिराजे छे. आ देहथी भिन्न आत्मा छे,
तेमां आनंद छे, तेनुं भान करीने सर्वज्ञ थया तेओ अरिहंतपरमात्मा छे.
जीवने पोतानी खबर नथी; पोताने भूलीने चारगतिना अनंत भव जीवे कर्या
छे. स्वर्गमां ने नरकमां, ढोरमां ने मनुष्यमां, एम चारगतिना अवतार जीवे अनंतवार
कर्या छे. श्रीमद्राजचंद्र आत्मज्ञानी हता, जेमने सातवर्षनी नानीवये पोताना
पूर्वभवनुं ज्ञान थयुं हतुं, तेओ १६ वर्षनी वये लखे छे के–
बहु पुण्य केरा पुंजथी शुभदेह मानवनो मळ्यो,
तोये अरे! भवचक्रनो आंटो नहीं एक्के टळ्यो.
आवो मोंघो मनुष्य अवतार मळ्यो, तेमां आत्मानुं भान करीने भवचक्र
केम मटे? ते करवा जेवुं छे. श्रेणीकराजा महावीर भगवानना वखतमां थया, तेने
पहेलां आत्मानुं भान न हतुं, ने वीतरागी दिगंबरमुनिनी विराधना करीने,
सर्पनो उपद्रव कर्यो तेथी नरकनुं आयुष बांध्युं हतुं. पण पछी मुनि पासेथी धर्म
सांभळी आत्मानी ओळखाण करी; ने पछी क्षायिकसमकित सहित तीर्थंकर नामकर्म
बांध्युं. आवती चोवीशीमां ते पहेला तीर्थंकर थशे. जेवा महावीर भगवान हता
तेवा ए