एकभवे तेओ तीर्थंकर थशे.
ज्ञानानंदस्वरूप छे. एवा आत्माने ओळखवो जोईए. ते माटे आचार्यदेव कळश १३८
मां कहे छे के–
ओळखो.
उत्तर:– आत्मा बेठो छे के नहीं? आत्मा जागीने पुरुषार्थ करे तेने कर्म कांई
गयो; नाना छोकराए तेने मार्यो, त्यां रोतो रोतो मा पासे जईने फरियाद करवा
लाग्यो के मा! आणे मने मार्यो! मा कहे–अरे ढगा! तुं आवडो मोटो, ने नानो
छोकरो तने मारे! तेम मोटा पुरुषार्थनो भंडार भगवान आत्मा, ते एम कहे के
जड कर्मे मने मार्यो! –तो जिनवाणीमाता कहे छे के अरे मोटा ढगा! तुं पोते
अनंता ज्ञाननो भंडार, अनंता वीर्यबळनो स्वामी, तुं तारा स्वरूपने भूलीने अंध
थयो छे, ने कर्मनो वांक मफतनो काढे छे. माटे जाग! तारो आत्मा शुद्ध ज्ञानमय छे–
एम तुं ओळख.
तारुं साचुं पद छे; तेने तुं ओळख. जेम काचो चणो वावतां ऊगे छे ने स्वाद
तूरो होय छे, पण तेने सेकतां मीठास आपे छे, ते मीठास क्यांथी आवी?
चणामां भरी हती ते ज प्रगटी छे; अने पछी ते सेकेलो चणो ऊगतो नथी. तेम
अज्ञानथी आत्मा दुःखनो तूरो स्वाद वेदे छे ने जन्म–मरण करे छे; पण साची
श्रद्धा अने साचा ज्ञान वडे तेने सेकतां आनंदनो स्वाद आवे छे ने पछी तेने
जन्म–मरण रहेता नथी. माटे राग विनाना शुद्ध ज्ञानस्वरूप पोताना आत्माने
ओळखवो–एम उपदेश छे.