Atmadharma magazine - Ank 317
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : फागण : २४९६
तीर्थंकर थशे. ए कोनो प्रताप? के अंदर सम्यग्दर्शन हतुं, आत्मानुं भान हतुं, तेथी
एकभवे तेओ तीर्थंकर थशे.
जेम कस्तुरीनी सुगंध मृगलानी डूंटीमां ज छे पण बहारमां ढूंढे छे, तेम चैतन्यनुं
सुख आत्मामां ज छे पण अज्ञानी बहार शोधे छे. आत्मा देह रागथी पार
ज्ञानानंदस्वरूप छे. एवा आत्माने ओळखवो जोईए. ते माटे आचार्यदेव कळश १३८
मां कहे छे के–
अरे जीवो! अनादि संसारथी रागमां अंध बनीने तमे सूता, रागने ज निजपद
मानीने तमे सूता छो. पण तमारुं निजपद तो ज्ञानमय छे, ते ज्ञानमय शुद्ध पदने तमे
ओळखो.
प्रश्न:– आप तो घणो आत्मा समजावो छो, पण करम हेरान करे तेनुं शुं?
उत्तर:– आत्मा बेठो छे के नहीं? आत्मा जागीने पुरुषार्थ करे तेने कर्म कांई
रोकता नथी. एक दश वर्षनो छोकरो आठ वर्षना नाना छोकरा साथे झगडो करवा
गयो; नाना छोकराए तेने मार्यो, त्यां रोतो रोतो मा पासे जईने फरियाद करवा
लाग्यो के मा! आणे मने मार्यो! मा कहे–अरे ढगा! तुं आवडो मोटो, ने नानो
छोकरो तने मारे! तेम मोटा पुरुषार्थनो भंडार भगवान आत्मा, ते एम कहे के
जड कर्मे मने मार्यो! –तो जिनवाणीमाता कहे छे के अरे मोटा ढगा! तुं पोते
अनंता ज्ञाननो भंडार, अनंता वीर्यबळनो स्वामी, तुं तारा स्वरूपने भूलीने अंध
थयो छे, ने कर्मनो वांक मफतनो काढे छे. माटे जाग! तारो आत्मा शुद्ध ज्ञानमय छे–
एम तुं ओळख.
प्रभो! राग तारा आत्मानुं साचुं स्वरूप नथी, पण तें आत्माने
रागवाळो ज मान्यो छे. आत्मानुं साचुं स्वरूप तो ज्ञान–आनंदमय छे, ते ज
तारुं साचुं पद छे; तेने तुं ओळख. जेम काचो चणो वावतां ऊगे छे ने स्वाद
तूरो होय छे, पण तेने सेकतां मीठास आपे छे, ते मीठास क्यांथी आवी?
चणामां भरी हती ते ज प्रगटी छे; अने पछी ते सेकेलो चणो ऊगतो नथी. तेम
अज्ञानथी आत्मा दुःखनो तूरो स्वाद वेदे छे ने जन्म–मरण करे छे; पण साची
श्रद्धा अने साचा ज्ञान वडे तेने सेकतां आनंदनो स्वाद आवे छे ने पछी तेने
जन्म–मरण रहेता नथी. माटे राग विनाना शुद्ध ज्ञानस्वरूप पोताना आत्माने
ओळखवो–एम उपदेश छे.