: फागण: २४९६ आत्मधर्म : ११ :
आत्मानी शक्ति अपार छे
जसदणना दरबारगढमां जाणे धर्मनो दरबार भरायो होय
एवा वातावरण वच्चे पू. गुरुदेव अत्यंत सुगम शैलीथी
आत्माना धर्मनुं स्वरूप समजावता हता; जसदणनी जनता
उपरांत दरबारश्री तथा रानीसाहेब पण प्रवचन सांभळतां हता.
(माह सुद ८–९ समयसार कलश ९७)
आ आत्मा अनादिथी पोताना ज्ञानस्वरूपने भूलीने अज्ञानने लीधे संसारमां
रखडे छे. आत्मा स्वयं ज्ञानरूप छे. पण शरीर हुं अने राग हुं एवी अज्ञानबुद्धि करीने
ते दुःखी थाय छे, ने एक गतिमांथी बीजी गतिमां भव करे छे. पूर्वभवमां आत्मा क्यां
हतो तेनुं भान पण थई शके छे. आत्मानुं ज्ञान जुदुं ने पूर्वभवनुं ज्ञान थाय ते जुदुं;
एक बाळाने अढी वर्षे पूर्वभवनुं ज्ञान थयुं छे; ते सोनगढमां रहे छे. आत्माना
ज्ञानसहित चार–चार भवनुं ज्ञान होय एवा आत्मा पण अत्यारे अहीं छे.......
आत्मानी ज्ञानशक्ति अलौकिक छे. ‘तुं बन जा बने तो परमात्मा.....तेरी आत्माकी
शक्ति अपार है.’
श्रीमद् राजचंद्रने (मोरबी पासे ववाणीयामां) सात वर्षनी वये पूर्वभवनुं ज्ञान
थयुं हतुं; तेमनी अगाध यादशक्तिथी चक्ति थईने गांधीजी ख्रिस्तधर्म अंगीकार करता
अटकी गया हता. ते श्रीमद् राजचंद्र १६ वर्षनी उंमरे ‘अमूल्य तत्त्वविचार’ मां लखे छे
के–
हुं कोण छुं? क्यांथी थयो? शुं स्वरूप छे मारुं खरुं?
कोना संबंधे वळगणा छे? राखुं के ए परिहरुं?
एना विचार विवेकपूर्वक शांतभावे जो कर्या,
तो सर्व आत्मिक ज्ञानमां सिद्धांत तत्त्वो अनुभव्यां.
आवी पांच कडीनो एक पाठ छे. अंदरमां तेमने आत्मानुं भान हतुं. अरे जीवो!
आवो मोंघो मनुष्यअवतार घणा पुण्यथी मळ्यो छे, तेमां जो आत्मानी ओळखाण
करीने भवचक्रनो अंत न आवे तो आ मनुष्यअवतार मळ्यो शा कामनो? बहारना
विषयोमांथी–लक्ष्मीथी–कुटुंबपरिवारनी सुख लेवा जतां आत्मानुं साचुं सुख चुकाई जाय
छे. अरे, आ वात जराक लक्षमां तो ल्यो. प्रभो! तारो आनंद