Atmadharma magazine - Ank 317
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: फागण: २४९६ आत्मधर्म : १७ :
पालेजपुरीमां चैतन्यरसना वेपारी
* ‘अनंतनाथ’ भगवान...
एटले अनंत गुणरत्नोथी
भरेलो चैतन्यरत्नाकर
माहवद बीजना रोज पालेज शहेरमां पधारतां स्वागत बाद जिनमंदिरमां
अनंत जिनेन्द्रदेवनां दर्शन–वंदन करीने, पछी मंगलप्रवचनमां अनंत गुणना
रत्नाकरनो महिमा बतावतां गुरुदेवे कह्युं के–स्वयंभूरमणसमुद्र (के जे असंख्य योजन
मोटो छे) तेमां रत्नो भर्या छे, तेनी रेती रत्नोनी रजनी बनेली छे; समुद्रमां रत्नो
भर्या होवाथी तेने रत्नाकर कहेवाय छे; तेम आ आत्मा अनंत गुणरत्नोथी भरेलो
चैतन्यरत्नाकर छे; ज्ञान–श्रद्धा–आनंद वगेरे अनंत रत्नो तेमां भरेला छे. अहीं
(पालेज जिनमंदिरमां) अनंतनाथभगवान बिराजे छे, तेम दरेक आत्मामां अनंत
गुणथी भरेलो अनंतनाथ परमात्मा बिराजे छे. पण परनी किंमत आडे पोते पोतानी
किंमत भूली गयो छे. पोते पोतानी किंमत करे तो तेनो आनंद प्राप्त थाय छे, ने
अंदरमां डुबकी मारतां सम्यग्दर्शनथी मांडीने केवळज्ञानरूप निर्मळ रत्नो हाथ आवे छे.
पर तरफनुं वलण छोडीने अंतरना चैतन्यसमुद्रमां अवगाहन करतां आनंदरसना
कणीया हाथ आवे छे, ते मंगळ छे.
* चैतन्यरसना वेपारी
“चैतन्यरसना अपूर्व वेपारी.....ज्ञानदान आपे अपार....भव्य सहु आवो
जोवाने....” एक वखतना पालेजपुरीना ए वेपारी आजे एनाथी जुदी जातनो
चैतन्यरसनो वेपार करी रह्या छे, चैतन्यरसनुं स्वरूप समजावी जगतना जीवोने अपूर्व
ज्ञानदान आपे छे...अने भारतभरना जिज्ञासु–गरागो ते लेवा उमटी रह्या छे.–आवा
भावसूचक भक्ति पू. बेनश्री–बेने पालेजमां करावी हती.
* सुखथी भरेलो चैतन्यदरियो....तेने अंतरमां शोधो *
बपोरे प्रवचनमां स. कळश ३२ उपर प्रवचन करतां गुरुदेवे कह्युं–अहो, आ
आत्मा चैतन्यनो महा दरियो अनंत गुणथी भरीओ; ज्ञानी तेनो अनुभव करीने