Atmadharma magazine - Ank 317
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: फागण: २४९६ आत्मधर्म : १९ :
तेथी भ्रमणारूपी तरणांनी ओथे आखो चैतन्यदरियो ऊछळतो तेने देखातो नथी. अरे!
एने पोताना आत्माने जोवानो उत्साह ने उल्लास अंतरमां आवतो नथी. अंदरमां
उल्लास लावीने जिज्ञासाथी समजवा मांगे तो आठ वर्षना बाळकने पण समजाय तेवी
वात छे. वेपार–धंधाना पाप आडे आत्माना हितनी दरकार करतो नथी, पण बापु! ए
तो बधुं फू थईने चाल्युं जशे. माटे आत्मा माटे निवृत्ति लईने तेनी समजण करवा जेवी
छे. रे जीव! तारो प्रभु तारामां छे.....अंतरमां तारा आत्माने तुं देख.
कोण मुक्ति
पामे छे?

कोण मुक्ति पामे छे?
जेओ शुद्ध आत्मानो अनुभव करे छे तेओ ज मुक्ति
पामे छे.
कोण मुक्ति नथी पामतो?
जेओ शुद्धआत्मानो अनुभव नथी करता ने परनो
आश्रय करे छे तेओ मुक्ति नथी पामता.
व्यवहारनो आश्रय शा माटे छोडवो?
केमके व्यवहारनो आश्रय ते परनो आश्रय छे, ने परनो
आश्रय करवाथी मुक्ति थती नथी, परनो आश्रय तो बंधनुं ज
कारण छे. माटे बंधथी जेणे छूटवुं होय तेणे पराश्रित व्यवहारने
छोडवो.
निश्चयनो आश्रय शा माटे करवो?
केमके निश्चय ते स्वद्रव्यना आश्रये छे, तेनो आश्रय
करवाथी ज मुक्ति थाय छे. माटे मोक्षार्थी जीवे निश्चयनो आश्रय
करवो.