: २० : आत्मधर्म : फागण : २४९६
शिरपुर (अंतरीक्ष–पार्श्वनाथ) मां पार्श्वनाथप्रभुनी प्रतिष्ठानो
पंचकल्याणक महोत्सव
ता. २ मार्च माह वद ९ ना रोज पू. श्री कानजी स्वामी शिरपुर पधार्या.....
उत्साहभर्युं भव्य स्वागत थयुं.....प्राचीन जिनमंदिरे (अंतरीक्ष पार्श्वनाथवाळा मंदिरे)
दर्शन करीने त्यां जैन धर्मध्वज चडाव्यो; अने पछी पारसनगर प्रतिष्ठामंडपमां
मंगलगीत अने स्वागत–प्रवचन बाद मंगल–प्रवचनमां गुरुदेवे कह्युं के भगवान
आत्मानो स्वभाव स्वयं साक्षात् मंगळरूप छे; ते त्रिकाळ मंगळ छे, तेना लक्षे
वीतरागता प्रगट करवी, ने राग–द्वेष–अज्ञाननो नाश करवो, ते मंगळ छे. सम्यक्त्वादि
पवित्रताने पमाडे ने मिथ्यात्वादि पापोने गाळे ते साचुं मंगळ छे.
वंदित्तुं सव्वसिद्धे......समयसारनी आ पहेली गाथानी टीकामां आचार्यदेवे
सौथी पहेलां अथ शब्द मूक्यो छे ते मंगळसूचक छे, ते अपूर्व साधकभावनी शरूआत
सूचवे छे. सौथी पहेलां सिद्ध भगवानने आत्मामां स्थापीने ‘समयसार’ नी शरूआत
करीए छीए, एटले के आनंदस्वरूप आत्मानी द्रष्टिवडे हवे सिद्धदशाना साधकभावनी
शरूआत थाय छे, ते अपूर्व मंगळ छे. ‘अंतरीक्ष’ एटले रागनुं पण जेने अवलंबन
नथी एवो निरालंबी भगवान आत्मा, तेना लक्षे राग–द्वेष–मोह वगरनो जे आनंदरूप
भाव प्रगट कर्यो ते ज मारुं अपूर्व मंगळ छे; अने जगतना बधा जीवोने पण ते ज
मंगळरूप छे.
–आवा अपूर्व मंगलपूर्वक महान उत्सवनो प्रारंभ थयो.
महाराष्ट्रमां आकोलाथी ४प माईल दूर आवेल शिरपुर आठेक हजारनी
वस्तीवाळुं जूनुं गाम छे, बे जिनमंदिरो छे, दिगंबर जैनोना प० जेटला घर छे;
त्यां एक नवीन चैत्यालयमां पार्श्वनाथप्रभुनी प्रतिष्ठानो भव्य पंचकल्याणक
महोत्सव माह वद ९ थी फागण सुद बीज सुधी थयो; तेनी अपूर्व शरूआत उपरना
मंगलपूर्वक थई.
स्वागत–अध्यक्ष कारंजाना शेठ ऋषभदासजीनी वती तेमना पुत्र नरेन्द्रकुमारजीए
स्वागत–प्रवचन कर्युं; तथा धन्यकुमारजी–के जेमणे तन–मन–धनथी अंतरीक्ष–पार्श्वनाथ
वगेरे जिनमंदिरोनी रक्षा माटे तथा दिगंबर जैनसमाजना मूळभूत हक्को पुन: प्राप्त करवा
माटे प्रयत्न कर्यो छे अने आ महान उत्सव माटे जेमनी मुख्य प्रेरणा