: फागण: २४९६ आत्मधर्म : २१ :
छे, तेमणे पार्श्वप्रभुनी भावभीनी स्तुतिवडे मंगलाचरण कर्युं.
उत्सव प्रसंगे शिरपुरना पादरमां पारसनगर वसी गयुं हतुं; तेनी शोभा
अनेरी हती.....मुंबई जेवा शहेरमां जेवी मंडपरचना थाय एवी ज भव्य
मंडपरचना नानकडा गाममां थई गई हती. भगवान पधारे त्यां भव्य नगरी
रचाई जाय–ए वात नजरे देखाती हती. चारेकोर सेंकडो डेरा–तंबुमां हजारो जैनो
वसी गया हता. मराठी–हिंदी–गुजराती अनेक भाषाना साधर्मीओनो धार्मिकमेळो
देखीने आनंद थतो हतो.
शिरपुरनगरीमां बे जिनालयो छे. एक मंदिरने पवळी मंदिर कहेवाय छे,
तेमां पांचसो–छसो वर्ष प्राचीन दिगंबरप्रतिमा पार्श्वप्रभुनी बिराजे छे. मंदिर
नीचेना भंडकमांथी अनेक दिगंबर मूर्तिओ नीकळी छे, तेमज प्राचीन मंदिरना
थांभले थांभले अनेक दिगंबर जिनप्रतिमा कोतरेली छे,–जाणे के ए पाषाणस्थंभ
पण पोकार करे छे के अहीं वीतरागी दिगंबर जिनबिंबो बिराजमान छे. मंदिरमां
बिराजमान पार्श्वप्रभुना प्रतिमा अतीव मनोज्ञ छे. आ मंदिरनी बाजुमां एक
नूतन चैत्यालय निर्माण थयुं छे ने तेमां पार्श्वप्रभुनी स्थापनानो आ पंचकल्याणक
महोत्सव छे.
बीजुं प्राचीन मंदिर–जमीन नीचे भोंयरामां छे, जेमां बधी (सोळ) वेदीओमां
दिगंबर जिनबिंबो बिराजे छे, तेमज ‘अंतरीक्ष पार्श्वनाथ’ तरीके ओळखाती प्रतिमा
पण अहीं बिराजे छे. मूळप्रतिमाजी दिगंबर शैलीना, अर्धपद्मासने बिराजमान छे,
त्रणेक फूटना उत्तम पाषाणनिर्मित छे, हालमां तेमना पूजन माटे दिगंबर अने
श्वेतांबरना त्रण–त्रण कलाकना वारा होय छे. दिगंबर जैनो निराभरणरूप
वीतरागदशामां पूजे छे, ने श्वेतांबरभाईओ साभरण बनावीने पूजे छे. बंने
अवस्थामां दर्शन कर्या, निराभरण दशा वखते प्रभुनी जे सहज वीतरागता देखाय छे,
–साभरण दशा वखते ते ढंकाई जाय छे. आ प्रभुने देखतां हृदयमां सहेजे काव्यनी
स्फुरणा थई के–
अंतरीक्ष प्रभु आप ज साचा देखी रह्या निज आतमराम;
रागतणुं पण नहीं आलंबन, स्वयंज्योति छो आनंदधाम.
रत्नत्रय आभूषण साचुं जड–आभूषणनुं नहीं काम,
त्रणलोकना मुगट स्वयं छो.....शुं छे स्वर्णमुगटनुं काम?