
मतभेद छे–जे प्रतिमा माटे श्वेतांबरभाईओ कहे छे के ते रेती अने छाणनी बनेली छे,
त्यारे दिगंबरभाईओ कहे छे के ते पाषाणनी ज छे. उपरनो बनावटी लेप दूर करवामां
आवे तो भगवाननुं असली स्वरूप तरत स्पष्ट थई जाय अने झगडानो नीकाल आवी
जाय. व्यवहारकुशळ जैनसमाजने माटे आटली सुगम वात पण केम दुर्गम बनी रही छे
ते खेदनी वात छे! अंतरीक्ष–पार्श्वनाथ तरीके ओळखाती आ प्रतिमा बाबतमां बीजो
एक खुलासो ए छे के, भूतकाळमां गमे तेम हो पण हालमां आ प्रतिमा जमीनथी ऊंचे
अधरपधर नथी बिराजती, जमणा हाथ तरफनो भाग तेमज डाबी तरफ पाछळनो
थोडोक भाग एम बे ठेकाणेथी ते जमीनने स्पर्शेली छे, बाकीना भागमां पोलाणने लीधे
ते जमीनने स्पर्शती नथी. बीजुं मंदिर जे पवळी मंदिर तरीके ओळखाय छे ते पांचसो
वर्षथी वधु प्राचीन छे. तेना थांभले थांभले प्राचीन दिगंबरमूर्तिओ कोतरेली छे, जेमां
बिराजमान बधी मूर्तिओ दिगंबर छे, जेना खोदकाममांथी नीकळेली बधी मूर्तिओ
(केटलीक मोटी–मोटी खंडित मूर्ति छे ते पण) दिगंबरी ज छे, अने पांचसो वर्ष प्राचीन
शिलालेखमां
कळिकाळ! सो वर्षनो अहींनो ईतिहास जाणनारा ने नजरे जोनारा नगरजनो (जेमां
सो वर्ष जेवडा वयोवृद्ध पण छे–) पण स्पष्ट कहे छे के मूळ मंदिर दिगंबरोनुं ज छे.
अहीं पहेलेथी दिगंबर जैनो ज रहे छे. श्वेतांबरभाईओ तो अहीं हता ज नहीं, तेओ
तो पाछळथी आव्या छे.
आवे छे ने अयोध्यानगरीना वैभवनुं, त्यां थयेल ऋषभदेव वगेरे पूर्व तीर्थंकरोनुं
वर्णन करे छे त्यारे ते सांभळीने पारसकुमार वैराग्य पामे छे.
पंचकल्याणक वगेरेमां क््यांय नथी आवता, मात्र भगवाननी दीक्षाप्रसंगे ज आवे छे.)