: फागण: २४९६ आत्मधर्म : २९ :
ढगला हो–बंने प्रत्ये समभाव छे; ज्यां एवो समभाव छे के कोई शत्रु नथी, कोई मित्र
नथी. एवी चैतन्य लीनता छे के–
एकाकी विचरतो वळी स्मशानमां,
वळी पर्वतमां वाघ सिंह संयोग जो;
अडोल आसन ने मनमां नहीं क्षोभ जो,
अपूर्व अवसर ऐसा हमको कब आयेगा?
आवी भावना तो भगवान भावता हता, ने पछी आजे साक्षात् एवी
मुनिदशा भगवाने प्रगट करी. दीक्षा लईने ध्यानमां लीन थया के तरत अप्रमत्तदशा ने
चोथुं ज्ञान भगवानने प्रगट्युं.
एक तरफ चार ज्ञानधारी पारसमुनिराज निज ध्यानमां बिराजी रह्या छे;
बीजी तरफ कानजी स्वामी परम भक्तिथी मुनिदशानो महिमा समजावी रह्या छे,
पंदर हजार श्रोताजनो मुग्ध बनीने वैराग्यभावनाने अनुमोदी रह्या छे; सभामां
एक बाजु एक मुनिराज, एक अर्जिका, हजारो श्रावक–श्राविकाओ, तेमज ईन्द्र–
ईन्द्राणीओ अने गजेन्द्र पण छे. महाराष्ट्रना विधानसभाना स्पीकर श्री भारदे
पण आ प्रसंगे आवी पहोंच्या हता अने बहुमानपूर्वक कह्युं हतुं के दुनियामां बीजा
देशो भले मोटा गणाता होय, पण सांस्कृतिक द्रष्टिसे–आध्यात्मिक द्रष्टिसे भारत
सौथी महान छे.
पूज्य गुरुदेवे मंगलप्रवचनरूपे कह्युं के–
देहथी भिन्न आत्मा अंदर चैतन्यमूर्ति छे. तेनुं भान करवुं ते मंगळ छे. जेम
श्रीफळनो गोळो छोलां–काचली अने छालथी जुदो धोळो मीठो छे, तेम आत्मा
चैतन्यनो आनंदगोळो छे ते शरीरथी–कर्मथी ने रागथी जुदो छे, तेनी श्रद्धा ने अनुभव
करवो ते मंगळ छे.
अहीं लोको पोतानी व्यवस्थामां रोकायेला हता त्यारे पारसमुनिराज तो
वनविहार करी गया...धन्य ए लोकनिरपेक्ष मुनिराज! धन्य एमनी वीतरागता!
नमस्कार हो ए दिगंबर मुनिराज गुरुदेवना चरणोमां... ‘नमो लोए सव्व साहूणं’
बपोरे कारंजाना नानकडा बाळकोए फरीने ‘अमरकुमारनी अमर कहानी’ पू.
कानजी स्वामीनी उपस्थितिमां रजु करी...नाना बाळकोना आ अभिनयथी अने
संस्कारथी सौए प्रसन्नता व्यक्त करी.