Atmadharma magazine - Ank 317
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म : फागण : २४९६
माह वद अमासनी सांजे नुतन जिनालयमां वेदी–कळश–ध्वज शुद्धि थई हती.
रात्रे १० चित्रोना प्रदर्शन द्वारा पार्श्वनाथ प्रभुना दश भवनुं वर्णन समजाव्युं हतुं.
(पार्श्वप्रभुना दश भवनुं पुस्तक–के जे अंतरीक्ष पार्श्वनाथ प्रभुनी सन्मुख लखवानुं
प्रारंभ करेल छे ते छपाईने थोडा वखतमां प्रसिद्ध थशे.)
फागण सुद एकमनी सवारे भक्तिपूर्वक मुनिराजनुं समूहपूजन थयुं. प्रवचन
पछी पार्श्वमुनिराज आहार माटे पधार्या ने नवधाभक्तिपूर्वक आहारदाननो भव्य
प्रसंग बन्यो. आहारदाननो लाभ कारंजाना शेठश्री ऋषभदासजी शाहू तथा
सनावदवाळा शेठश्री कुंवरचंदजीने मळ्‌यो हतो; हजारो भक्तोए अनुमोदना करी हती;
अने पछी मुनिराजना पगले पगले तेमनी साथे जईने श्रावकोए परम भक्ति करी
हती. आवी अद्भुत मुनिभक्ति हृदयमां प्रसन्नता उपजावती हती.
बपोरे साडाबार वागे एक भव्य दिगंबर जैन धर्मशाळाना निर्माण माटेनुं
शिलास्थापन जैन समाजना आगेवान शेठश्री शांतिप्रसादजी साहुना सुहस्ते थयुं हतुं.
गुरुदेव पण उपस्थित हता. शेठश्री तरफथी रूा. पचीसहजार ने एक धर्मशाळा माटेना
फंडमां जाहेर करवामां आव्या हता; तेमज मुंबईवाळा शेठ कान्तिभाई तरफथी रूा.
पचीस हजार ने एक जाहेर करवामां आव्या हता. त्यारबाद पू. कानजी स्वामीए
जिनभक्तिपूर्वक भगवानश्री पार्श्वनाथ वगेरे अनेक जिनबिंबो उपर मंत्राक्षर लखीने
अंकन्यास कर्युं हतुं. पछी केवळज्ञानकल्याणक तथा समवसरण–रचना थई हती. प्रवचन
बाद साहू शांतिप्रसादजी शेठनी अध्यक्षतामां तीर्थक्षेत्र कमिटिनी सभा थई हती; तेमां
आपणा तीर्थोनी रक्षा माटे, उद्धार माटे अने उन्नति माटे आखा जैन समाजे
जागृतिपूर्वक घणुं करवानुं छे तेनो ख्याल आपवामां आव्यो हतो. ओल ईन्डिया
रेडियोनी नागपुर शाखाना प्रतिनिधिओ आ उत्सवनो तथा प्रवचननो अहेवाल लेवा
माटे आव्या हता.
फागण सुद बीज: सवारमां भगवान पारसनाथप्रभु सम्मेदशिखर परथी
निर्वाण पामे छे ने ईन्द्रो निर्वाणकल्याणक ऊजवे छे ते द्रश्यो थया हता. सवादश वाग्या
पछी तरत जिनालयोमां जिनबिंबोनुं स्थापन थयुं हतुं. सोनगढमां सीमंधर प्रभुनी
प्रतिष्ठानो दिवस पण आजे ज हतो; ने सोनगढना संत आजे अहीं जिनेन्द्र–प्रतिष्ठा
करी रह्या छे. हजारो भक्तोना उल्लास वच्चे गुरुकहाने सुहस्ते पारस परमात्मानी
प्रतिष्ठा करी, कमळ उपर पार्श्वनाथ भगवान अत्यंत वीतरागभाव