Atmadharma magazine - Ank 317
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: फागण: २४९६ आत्मधर्म : ३१ :
वरसावता शोभी रह्या हता. मौनपणे पण ए मूर्ति जगतने कहेती हती के भगवान
होय तो आवा होय. मूळ पार्श्वनाथभगवान उपरांत बीजा पण केटलाय भगवंतोनी
पण स्थापना थई हती. पवळी मंदिरना भंडकमांथी नीकळेला प्राचीन दिगंबर
प्रतिमाओनी पण ते मंदिरमां पुन: स्थापना थई हती. कुंदकुंदस्वामी, अकलंकस्वामी
वगेरे दिगंबर गुरुओना चरणकमळनी पण स्थापना थई हती. आवो आनंदकारी
उत्सव देखीने दरेक जैनोनुं हैयुं पुलकित बन्युं हतुं. सेंकडो वर्षे शिरपुरमां आवो भव्य
उत्सव उजवायो ने पारसप्रभुनो महिमा सर्वत्र व्यापी गयो. भारतना अनेक
प्रांतमांथी दिगंबर जैनोए आवीने आ उत्सवमां आनंदथी भाग लीधो हतो ने
“भारतभरना जैनो एक छीए’ एवुं स्पष्ट वातावरण खडुं करी दीधुं हतुं. अंतरीक्ष
पार्श्वनाथ प्रभुना दर्शन माटे जे भीड जामती हती, ने प्रभुना दर्शन पछी जे भक्ति
थती हती तेनां द्रश्यो अद्भुत हता. उत्सव प्रसंगे चारेक लाख रूा. जेटली आवक थई
हती तथा खर्च दोढेक लाख रूा. थयुं हतुं. गामनी जैन–जैनेतर जनताए तेमज बासीम–
कारंजा वगेरेना जैनसमाजे खूबज प्रेमथी सहकार आपीने उत्सवने शोभाव्यो हतो.
साथे एक वातनो उल्लेख करवो पण जरूरी छे के उत्सव दरमियान श्वेतांबर भाईओए
पण कोई जातनी हिलचाल वगर शांति जाळवी हती, ते प्रशंसनीय छे. जैनसमाजमां
सदाय सर्वत्र आवुं शांत वातावरण जळवाई रहे तो केवुं सारूं! आनंदथी उत्सव पूरो
थतां बपोरे शांतियज्ञ अने प्रवचन पछी जिनेन्द्र भगवाननी भव्य रथयात्रा नीकळी
हती. अने पारस प्रभुना जयजयकार पूर्वक पू. कानजीस्वामीए शिरपुरथी जलगांव
तरफ प्रस्थान कर्युं हतुं.
रात्रे चीखली गामे रोकाया हता. अने त्यां जिनमंदिरमां दर्शन करीने बीजे
दिवसे फागण सुद त्रीजनी सवारमां पू. गुरुदेव जलगांव शहेर पधार्या.
जलगांव शहेरमां जिनबिंब वेदीप्रतिष्ठा–महोत्सव
गुरुदेव जलगांव पधारतां आनंदपूर्वक स्वागत कर्युं. अहीं जलगांवमां
शिखरबंध नुतन जिनमंदिर लगभग एक लाख रूा. ना खर्चे तैयार थयुं छे, तेमां
जिनेन्द्रभगवंतोनी वेदीप्रतिष्ठानो उत्सव शरू थयो. बपोरना प्रवचन पछी शेठश्री
वृजलाल मगनलालना सुहस्ते जैनझंडारोपण थयुं; तथा केशवलाल महीजीभाईना
सुपुत्रो आनंदीभाई वगेरेए प्रतिष्ठामंडपमां जिनेन्द्रभगवानने बिराजमान कर्या.
प्रभुजीनी मंगलछायामां प्रतिष्ठा–महोत्सव चाली रह्यो छे, तेना विगतवार समाचार
आवता अंकमां वांचशोजी, जयजिनेन्द्र
(जलगांव फा. सुद त्रीज: ब्र. ह. जैन)