
उपर प्रवचनो थता हता; तेमां सम्यग्दर्शन शुं अने
श्रावकनी भूमिकामां सम्यक्त्वसहित केवा भावो होय,
वीतरागी देव–गुरु–शास्त्र तरफ पूजा–बहुमान वगेरे केवा
भावो होय तेनुं सुंदर विवेचन थतुं हतुं; तेनो थोडो भाग
अहीं आप्यो छे.
एटली उग्र थई गई छे के वस्त्रधारण करवा जेटलो राग त्यां रह्यो नथी. आम छतां,
मुनिदशामां थोडा पण वस्त्र अंगीकार करवानुं जे माने तेने वीतरागी मुनिदशानी
खबर नथी; मुनिनी दशामां संवर–निर्जरा केटला तीव्र छे, आस्रव–बंध केटला मंद थई
गया छे, तेनी तेने खबर नथी; एटले बधा तत्त्वोमां तेनी भूल छे.
शुभभाव केवो होय? तेनुं वर्णन आ उपासक संस्कार अधिकारमां छे.
वीतरागताने अनुरूप तेमनी प्रतिकृति स्थापे छे. भगवाननी प्रतिमा पण भगवान
जेवी वीतराग होय, तेने वस्त्र–आभूषण न होय. दिनेदिने पहेलां परमात्माने याद
करीने तेमना दर्शन–पूजन करे, ए श्रावकनुं कर्तव्य छे. वीतरागता जेने वहाली छे ते
सौथी पहेलां वीतराग परमात्माने याद करीने पछी बीजा काममां जोडाय छे.
सर्वज्ञ–वीतरागनी स्तुति करवानुं मने व्यसन छे. धर्मीने सर्वज्ञ परमात्मानो प्रेम
जाग्यो ते कदी छूटतो नथी.