: फागण: २४९६ आत्मधर्म : ४५ :
–: जाणनारने जाण्या विना कल्याण कोनुं? :–
व्यारा शहेरमां जैन उपाश्रयमां प्रवचन हतुं.
शहेरना श्वेतांबर समाजना भाईओए पण उत्साहपूर्वक
सहकार आपीने लाभ लीधो हतो; ने समाजमां प्रेमभर्युं
वातावरण हतुं.
(व्यारा शहेरमां प्रवचन: माह वद त्रीज)
ज्ञान वडे आत्मा पोते पोताने जाणे ते कल्याणनो उपाय छे. ज्ञानने अंतर्मुख
करीने आत्मा पोते पोताने जाणतां आनंदनो अनुभव थाय छे. अरिहंत भगवान
सर्वज्ञ परमात्मा थया ते क्यांथी थया? आत्मामां केवळज्ञाननी ताकात हती, तेनुं भान
करीने तेमांथी सर्वज्ञता अने पूर्ण आनंद प्रगट कर्यो छे, बहारथी सर्वज्ञता नथी आवी.
एकेक आत्मामां पोतानी सर्वज्ञशक्ति छे; सर्वज्ञशक्तिवाळा पोताने जाणतां रागादि
परभावोमां आत्मबुद्धि रहेती नथी; सर्वज्ञस्वभावी पोते पोताने जाण्या वगर रागबुद्धि
छूटे नहीं ने कल्याण थाय नहीं.
जेम श्रीफळमां सफेद मीठुं टोपरुं छे ते राती छालथी जुदुं, काचलीथी जुदुं, तेमज
उपरना छालांथी जुदुं छे; तेम आनंदथी भरेलुं शुद्ध चैतन्यतत्त्व रागादि भावकर्मोथी
जुदुं छे, आठकर्मोरूपी काचलीथी जुदुं छे, तेमज छोतां जेवा शरीरथी जुदुं छे. आवुं
चैतन्यपद ते ज आत्मानुं साचुं निजपद छे. आवुं निजपद बतावीने आचार्यदेव कहे छे
के अरे जीवो! मोहमां केम सूता छो? परपदने निजपद समजीने तमे मोही केम थई
रह्या छो? ए पद तमारुं नथी. तमारुं पद तो चैतन्यस्वरूप छे, तेने तमे जाणो.
निजपदने जाणवाथी ज कल्याण थाय छे. निजपदने जाण्या विना बीजा अनंत उपाये
पण कल्याण न थाय. अरे, आवुं मनुष्यपणुं मळ्युं तेमां आत्माना हितनो तो विचार
करो. आत्मा शुं चीज छे ने तेनुं साचुं स्वरूप शुं छे ते ओळखो.
प्रभु! तारा आत्माने भूलवाथी अने बहारमां सुख शोधवाथी क्षणे क्षणे तारुं
भावमरण थाय छे. हीरानी, रत्नोनी बहारनी वस्तुनी किंमत तुं करे छे, बधानी किंमत
करनारो आत्मा पोते केवो किंमती छे? केवा अनंतगुणो तेनामां छे? तेनी तने खबर
नथी; जाणनारो पोते पोताने जाणतो नथी–ए ते ज्ञान केवुं? बापु! तुं तो आनंदनुं
धाम छो. अंतरमां तारा आत्माने जाण तो तारो आनंद तने अनुभवाय. जाणनारने
जाण्या विना कल्याण कोनुं? जाणनारो पोते पोताने जाणे ते ज कल्याण छे.