Atmadharma magazine - Ank 317
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: ४६ : आत्मधर्म : फागण : २४९६
एकवार अंतर्मुख थईने आत्मा पोते पोताने जाणे तो परभावोथी भिन्नतानुं
एवुं भेदज्ञान थाय के फरी कदी एकताबुद्धि न थाय; जेम पर्वत उपर वीजळी पडे ने
पर्वत फाटीने बे कटका थाय ते फरीने रेण दीधे संधाय नहीं. तेम भेदज्ञानरूपी वीजळी
पडी त्यां ज्ञान अने रागनी एकता एवी तूटी के रागनो अंश पण ज्ञानरूपे भासतो
नथी. आवुं भेदज्ञान कर्युं ते जीव संसारने छेदीने अल्पकाळमां मुक्ति पामे छे.
* आत्मानी सेवाथी
मोक्ष पमाय छे *
व्यारा पछी सोनगढ पासेना उकाई (ज्यां तापी नदी
पर एक अबज रूा. नी मोटी डेमयोजनानुं काम चालीस
हजार माणसो द्वारा धमधोकार चाली रह्युं छे–त्यां) थईने
माह वद चोथे धूलिया (धूळें) शहेर आव्या. एक लाखनी
वस्तीवाळा आ शहेरमां चालीस जेटला दि. जैनोना घर छे.
एक जिनमंदिर छे. स्वागत बाद जैनउपाश्रयमां
मंगलप्रवचन थयुं; श्वेतांबर समाजना भाईओनो पण
सारो सहकार हतो. बपोरे पण त्यां ज प्रवचन थयुं तेमां स.
आ आत्मा पोते ज्ञान–आनंदस्वभावथी भरेलो भगवान छे; तेने ओळखीने
तेनी सेवाथी सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र थाय छे, अने ते मोक्षनो उपाय छे.
जे जीव आत्माने भूलीने पोताना सुखने माटे परवस्तु मांगे छे ते भीखारी छे;
थोडुं मांगे ते नानो मांगण, झाझुं मांगे ते मोटो मांगण; अने परथी भिन्न चैतन्यनुं
भान करीने जे कांई न मांगे ते मोटो राजा छे. धर्मी पोताना चैतन्यराजाने जाणे छे के
हुं पोते ज्ञान अने आनंद वगेरे अनंत वैभवनो स्वामी छुं, मारा सुख माटे कोई बीजा
पदार्थनी मारे जरूर नथी–आम चैतन्यस्वरूप आत्माने ओळखीने, तेनी श्रद्धा करीने,
तेनुं अनुचरण करवुं ते मोक्षनो उपाय छे.