Atmadharma magazine - Ank 317
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: २ : आत्मधर्म : फागण : २४९६
स्वयं आनंदरूप छे–एम जाणनार जीव ज्ञानमां तन्मय थाय छे ने अज्ञानरूप संसारथी
छूटो पडे छे.
जीवे अनंतकाळमां बहारनुं बीजुं घणुं जाणपणुं कर्युं पण पोते पोताना आत्माने
न जाण्यो; ज्ञानस्वरूपी पोताने ज पोते न जाण्यो. शुद्ध आत्मानी वात ज्यारे सांभळवा
मळी त्यारे अंतरना प्रेमथी तेनुं श्रवण पण न कर्युं; आत्माना ज्ञानवगरनुं बधुं
जाणपणुं के शास्त्र भणतर ते पण थोथां छे, अज्ञान छे. ते अज्ञान टाळवानी रीत शुं?
के चैतन्यभावने समस्त परभावोथी जुदो जाणवो ते ज अज्ञान टाळवानो उपाय छे.
बाकी बीजा कोई उपायथी के रागथी अज्ञान मटे नहीं.
उमराळानो एक भावसार, जेनुं नाम सुंदरजी, पिता रूपचंद, अने काम
जुओ तो नाकनो गुंगो काढीने मोढामां चाव्या करे! तेम आ आत्मा सारभूत
भावोथी भरेलो, सुंदर चैतन्यस्वरूप वस्तु छे, पण पोते पोताने भूलीने एने एवी
कुटेव पडी छे के राग–द्वेष मलिनभावोने ज निजरूप मानीने अनुभवे छे ने तेमां
सुख माने छे. भाई तुं तो उत्तम चैतन्यभाववाळो, आनंदथी भरेलुं सुंदर रूप, तेनुं
वेदन कर; आ परभावरूप मलिनतानुं वेदन तने शोभतुं नथी. तारुं वेदन तो
आनंदरूप होय.
भगवान! एकवार सांभळ तो खरो! आ तने तारा आनंदनी प्राप्ति केम थाय
तेनी वात संतो तने संभळावे छे. तारी चीज तारामां छे, तारा चैतन्यभावमां तारो
आत्मा छे, तेने बहारमां के पुण्यपापमां शोध्ये ते नहीं मळे. ज्ञान अने राग बंनेनुं
भिन्नभिन्न स्वरूप छे, तेने ओळखतां आत्मा रागथी पाछो वळी जाय छे एटले के
ज्ञानमां एकतारूप ने रागथी भिन्नतारूप परिणमन थाय छे. आ रीते भेदज्ञान वडे ज
आत्मा आस्रवोथी छूटीने मुक्तिने पामे छे.
आत्माना ज्ञान वगर चारे गतिना अनंत अवतार जीवे कर्या छे. स्वर्गनाय
अनंत अवतार करी चुक्यो. शुभभाव करीने अनंतवार स्वर्गमां जवा छतां लेशमात्र
सुख जीव न पाम्यो, एटले के दुःख ज पाम्यो. शुभराग ते पण दुःख छे, आस्रव छे,
अपवित्र छे, तेनाथी भिन्न आत्मानो सहज चैतन्यस्वभाव ज सुखरूप छे. अनाकुळ छे,
पवित्र छे. आवा आत्माने ओळखे तो ज संसारदुःखथी छूटीने मोक्षसुखनो मार्ग हाथ
आवे.
(विशेष माटे जुओ पानुं: ४०)