: चैत्र : २४९६ आत्मधर्म : ९ :
फागण सुद सातमे पू. श्री कानजीस्वामी जलगांवथी
धरणगांव पधार्या अने जिनालयना जिनबिंबोनां दर्शन
बाद स. कळश १२६ उपर प्रवचन कर्युं, तेनो सार.
आ समयसार कुंदकुंदाचार्यदेवे बे हजार वर्ष पहेलां रच्युं हतुं. तेओ सीमंधर
परमात्मा पासे अहींथी देहसहित गया हता, ने तेमनी वाणी सांभळीने आ शास्त्र
रच्युं छे. तेमां आत्माना स्वभावनुं अलौकिक वर्णन छे.
आत्मानुं निजरूप ज्ञान ने आनंदरूप छे. शरीरने धारण करवुं ते कांई आत्मानुं
स्वरूप नथी; राग करवो ते पण आत्मानुं खरूं स्वरूप नथी. आत्मा ते चैतन्यस्वरूप छे.
चैतन्यमय आत्मा, अने जडरूपता धरतो राग,–ए बंनेने भिन्नता छे. आवी
भिन्नताना भान वडे भेदज्ञान करतां पोतानो चैतन्यदेव पोतामां ज देखाय छे. जेवा
सर्वज्ञ परमेश्वर छे तेवो ज मारो आत्मा छे एवुं भेदज्ञान वडे धर्मीने भान थाय छे.
अहो, आवी दिव्य शक्तिवाळो आत्मा, ते पोताना स्वरूपने भूलीने संसारनी
जंजीरमां फसायो छे. पण निर्दोष स्वभावनुं भान करतां ते संसारनी जंजीर छूटी जाय
छे. चेतनता अने राग ए बंने अत्यंत जुदा छे, अंतरमां भेदज्ञानना उग्र अभ्यास वडे
बंनेनी भिन्नता थाय छे ने आत्मा आनंदित थाय छे. भेदज्ञान आत्माने आनंदरूप
करतुं प्रगट थाय छे. अज्ञानी पोताना पवित्र आनंदमय चैतन्यभावने भूलीने
(गुंगानो स्वाद लेनारा सुंदरजी रूपा भावसारनी माफक) रागादि मलिन भावोनो
स्वाद ले छे ने ते रागना स्वादमां आनंद माने छे. तेने आचार्यदेव समजावे छे के
भाई! आ रागनो स्वाद ए कांई आत्मानो खरो स्वाद नथी. आत्मानो खरो स्वाद
राग वगरनो, ज्ञान ने आनंदमय छे. रागथी भिन्न आत्माना भेदज्ञान वडे आवा
आनंदनो स्वाद अनुभवमां आवे, तेनुं नाम धर्म छे.
पंच परमेष्ठी वीतरागस्वरूप छे, तेमना वीतरागस्वरूपने कदी जीवे ओळख्युं
नथी, ओळख्या वगर बहारथी पंचपरमेष्ठीने मानी ल्ये, तेथी कांई सम्यग्दर्शन थाय
नहीं. आत्मानुं वास्तविक स्वरूप अरिहंत भगवान जेवुं शुद्ध छे, तेमां अंतर्मुख द्रष्टि
करीने प्रतीत करतां सम्यग्दर्शन थाय छे, आवा सम्यग्दर्शन वगर