Atmadharma magazine - Ank 318
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : चैत्र : २४९६
कदी धर्म थाय नहीं. श्रेणीक राजानी महाराणी चेलणादेवीने आवा आत्मानुं भान हतुं;
अने तेनी साथे यशोधर मुनिराज पासे जईने श्रेणीक राजा पण धर्म पाम्या हता.
आवा आत्माना भानपूर्वक पछी तीर्थंकरप्रकृति बांधी छे अने आवता भवमां ते
तीर्थंकर थशे. आवुं सम्यग्दर्शन करवुं ते धर्म छे. राजपाटमां होवा छतां अने व्रतादि न
होवा छतां श्रेणीक राजाने सम्यग्दर्शन अने आत्मभान हतुं, तेना प्रतापे एक भवमां
तीर्थंकर थईने, मुनि थईने मोक्ष पामशे. सम्यग्दर्शन वगर गमे तेटली बीजी क्रिया करे
तेनाथी चार गति सिवाय बीजुं कांई मळे तेम नथी.
अहो! आत्मा पोते विज्ञानघन चेतन वस्तु छे, राग तेमां प्रवेश करतो नथी.
आवा आत्माने भेदज्ञान वडे जाणीने हे जीवो! तमे आनंदित थाओ. आवा भेदज्ञान
वडे ज आत्मानो साचो आनंद पमाय छे, पुण्य–पापमां क््यांय साचो आनंद नथी. माटे
अंतरमां राग अने ज्ञाननी भिन्नताना दारूण तीव्र प्रयत्न वडे भेदज्ञान करवुं ते धर्म
छे.
हिंदु कोण?
जैन कोण?
हिन्दु विश्वधर्म परिषदना केटलाक कार्यकरो
जलगांवमां पू. श्री कानजी स्वामी पासे आवेला; ते
वखते पू. श्रीए धर्मनो साचो भाव समजावतां कह्युं के
हिंसाथी जे दूर रहे तेनुं नाम ‘हिंदु.’ राग–द्वेष–अज्ञान
भाव ते हिंसा छे, अने हिंसाथी जे दूर एटले के
आत्मज्ञान अने वीतरागता प्रगट करे ते भाव
अपेक्षाए हिंदु कहेवाय छे. तेमणे मोहने जीत्यो ते
अपेक्षाए ‘जैन’ कहेवाय, ने भावहिंसाथी ते दूर थयो
ते अपेक्षाए ‘हिंदु’ पण कहेवाय. प्रत्येक आत्मानी
स्वतंत्रताना सम्यग्ज्ञान वडे जे वीतरागता प्रगट करे
ते जीव धर्मी छे, पछी तेने कोईपण गुणवाचक नामथी
ओळखी शकाय छे.