: चैत्र : २४९६ आत्मधर्म : ११ :
मलकापुरमां
चार दिवस
[फागण सुद ९ थी १२ समयसार गा. ७३]
पू. गुरुदेव फागण सुद ९ना रोज मलकापुर
पधार्या; भावभीनुं स्वागत थयुं. बे जिनमंदिरोमां दर्शन
कर्या. तेमांथी बडा–जिनमंदिरमां बिराजमान
महावीरप्रभुनी मोटी प्रतिमा २१ वर्ष पहेलां (सं.
२००पमां) वींछीया गाममां पंचकल्याणक वखते
गुरुदेवना सुहस्ते प्रतिष्ठित थई हती. अहींनी त्रण
ब्रह्मचारी बहेनो सोनगढ–ब्रह्मचर्याश्रममां रहे छे. चार
दिवसना कार्यक्रम दरमियान समयसार गा. ७३ उपर
प्रवचनो थया. प्रथम मंगलाचरणमां कह्युं के–धर्मीने
परमात्मपद वहालुं छे तेथी आत्मामां तेने स्थापीने
मंगळ करे छे. परमात्मपदनो जेने प्रेम जाग्यो तेने
रागनो प्रेम रहे नहीं. आ रीते रागनो प्रेम छोडीने
परम चैतन्यपदनो प्रेम (रुचि–श्रद्धा–अनुभव) करवो ते
महान मंगळ छे.
देहथी भिन्न भगवान आत्मा चैतनस्वरूप छे; ते रागथी जुदा स्वभाव वाळो
छे. राग पोते पोतानो प्रकाशक नथी, पण चैतन्यरूप ज्ञान पोते पोताने, तेमज पोताथी
भिन्न एवा रागने पण प्रकाशे छे. आ रीते रागमां स्व–पर प्रकाशकपणुं नथी तेथी ते
अचेतन छे. ज्ञानमां ज स्व–पर प्रकाशकपणुं छे, तेथी ते ज आत्मानुं स्वरूप छे.
आम ज्ञान अने रागनी भिन्नतानुं भान करीने जे भेदज्ञान करे छे ते जीव
पोताना आनंदने अनुभवे छे, ने रागादिभावोने पोताथी अन्यपणे देखे छे. आवा
पोताना आत्माने धर्मी अनुभवे छे.
रागमां भगवानपणुं नथी, महिमावंतपणुं नथी, स्व–पर प्रकाशक एवा ज्ञानमां
ज भगवानपणुं छे, ते ज महिमावंत छे. तेथी आचार्यदेवे आत्माने