Atmadharma magazine - Ank 318
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९६
‘भगवान’ कह्यो छे. आवा पोताना भगवान आत्माने ओळखे तेने अतीन्द्रिय
आनंदना अमृत आत्मामां वरसे छे. अहो! भेदज्ञाननुं स्वरूप बतावीने वीतरागी
संतोए आ पंचमकाळमां अमृत वरसाव्या छे.
आत्मानुं स्वरूप समजवानी जेने जिज्ञासा छे, दुःखथी ने दुःखनां कारणरूप
परभावोथी छूटवानी जेने धगश छे, अने विनयथी जे पूछे छे एवा शिष्यने
आचार्यदेव आत्मानुं खरूं स्वरूप समजावे छे. ‘काम एक आत्मार्थनुं, बीजो नहि मन
रोग’–एवी जिज्ञासावाळा जीवने आचार्यदेव आ समयसार द्वारा शुद्धआत्मा देखाडे छे.
अहा, जेमने भगवानना सीधा भेटा थया हता एवा कुंदकुंद आचार्यदेवे निजवैभवथी
आ अलौकिक शास्त्रनी रचना करीने जगत उपर मोटो उपकार कर्यो छे.
धर्मी जाणे छे के हुं चैतन्यमय आत्मा छुं.–केवो छुं? के स्वसंवेदनथी प्रत्यक्षरूप
छुं. स्वसंवेदन वडे में मारा आत्माने प्रत्यक्ष कर्यो छे. परोक्ष रहुं के रागवडे अथवा
ईन्द्रियज्ञान वडे जणाउं एवो हुं नथी, एनाथी तो हुं भिन्न छुं–आवा आत्माने
स्वसंवेदनमां ल्ये त्यारे साचा आत्माने जाण्यो कहेवाय. आ चैतन्यस्वरूप आत्मा राग
अने कर्म सहित नथी. छतां अज्ञानी–जीवो तेने तेनाथी सहित माने छे, बालीश एटले
के अज्ञानी जीवो आत्माने परभावोथी सहित ज देखे छे, ते ज संसार–भ्रमणनुं मूळ छे.
ने सर्वे परभावोथी भिन्न चैतन्यस्वरूप आत्माने स्वसंवेदनवडे अनुभववो ते मोक्षनुं
मूळ छे.
माटे जे दुःखथी छूटवा चाहता होय ने मोक्षसुखने अनुभवमां लेवा चाहता होय
तेओ पोताना ज्ञानना स्वसंवेदन वडे आवा आत्माने जाणीने, तेनो अनुभव करो, आ
ज सम्यग्दर्शन प्रगट करवानो ने दुःखथी मुक्त थवानो उपाय छे.
[मलकापुरमां रात्रे तत्त्वचर्चा पण सारी चालती हती; तेमां खास करीने युवान
भाईओ शास्त्रना अभ्यास पूर्वकना प्रश्नो पूछता हता. सेंकडो जिज्ञासुओ प्रेमथी श्रवण
करता हता. युवक वर्ग तत्त्वना अभ्यासमां आवो रस धरावे छे–ते जोईने गुरुदेवे पण
प्रसन्नता व्यक्त करी हती.)
शिष्यनो प्रश्न आत्माना ऊंडाणमांथी ऊग्यो छे, पुण्य–पाप बंनेथी पार पोतानुं
साचुं तत्त्व शुं छे ते लक्षमां लेवा मांगे छे. मारुं परम तत्त्व आनंदना वैभवथी भरेलुं छे
तेने भूलीने शरीर अने रागवडे आत्माने ओळखाववो ते तो कलंक छे, शरम छे,
उपाधि छे. मनुष्यपणुं–देवपणुं–रागीपणुं वगेरेथी ओळखाववो