: चैत्र : २४९६ आत्मधर्म : १३ :
ते आत्मानी साची ओळखाण नथी. आत्मा तो देह अने रागथी पार एवा
स्वसंवेदनस्वरूप छे. पोतानो आत्मा ज चैतन्य परमेश्वर छे. नाना–नाना बाळकोने
पारणामांथी पण एवा संस्कार आपवा जेवा छे के तुं शुद्ध छो, तुं आनंद छो, तुं चैतन्य
छो...आवा आत्मानी ओळखाण करवी ते ज धर्मनी साची विधि छे.
अहा, चैतन्यतत्त्व शुभरागथी ने पुण्यथी पण पार छे त्यां बहारना संयोगनी
के शरीरनी तो शी वात? शिष्य एम पूछे छे के–प्रभो! रागादि आस्रवोथी मारो आत्मा
केम छूटे? आस्रवोथी छूटवानी विधि शुं? एटले आस्रवो पुण्य–पाप ते छोडवा जेवा छे,
ते दुःखदायक छे–एम तो मान्युं छे, तेनाथी छूटवा तो मांगे छे. पुण्यथी मने धर्मनो
लाभ थशे एवी पक्कड नथी करतो. पण तेनाथी पार आत्मानुं स्वसंवेदन करवा मांगे
छे. तेने आचार्यदेव तेनी साची रीत बतावे छे.
आत्मतत्त्वनुं परमार्थस्वरूप शुं छे तेनो साचो निर्णय करवो ते ज आस्रवथी
छूटवानो उपाय छे. आस्रवोथी भिन्न तत्त्वना साचा निर्णय वगर तेनाथी छूटवानो
प्रयत्न जागे ज नहीं. भिन्नताना भानवडे आत्मामां एकाग्र थतां ज आस्रवोनी पक्कड
छूटी जाय छे.
[फागण सुद ११ नो दिवस मलकापुरमां आनंदकारी हतो. सवारमां बडा
जिनमंदिरमां कुंदकुंदगुरुना शिष्य कानजी स्वामीना सुहस्ते परम भक्तिपूर्वक श्री
कुंदकुंदाचार्यदेवना पवित्र चरणोनी स्थापना थई हती. सेंकडो भक्तो मुनिराजनी स्तुति
करता हता, ने मलकापुरना सर्वे उत्साही मुमुक्षुओने घणो हर्षोल्लास हतो; केमके पू.
बहेन शांताबेननो मंगल जन्म–दिवस पण आजे ज हतो. प्रवचनमां ७३मी गाथा
द्वारा स्वसंवेदनप्रत्यक्ष अखंड आत्मानुं स्वरूप गुरु समजावता हता.)
हुं स्वसंवेदनप्रत्यक्ष छुं, ने द्रव्य–पर्यायना भेद वगरनो एक अखंड छुं. आवो
अनुभव करनारा समकिती जीव जगतमां साचा सुखी छे; ते चैतन्यऋद्धिना स्वामी
एवा बादशाह छे, जगतनी बाह्य रिद्धिथी ते उदास छे. अंतरनी लक्ष्मीमां लक्षने
बांधीने लक्षपति थया छे, तेथी बहारनुं बीजुं कांई ते मांगता नथी. आवा धर्मात्मा
जीव स्व–अर्थमां एटले के पोताना आत्माने साधवामां ज तत्पर छे. एना पेटमां,
एना अंतरमां परमेश्वर बेठा छे.
धर्मी जाणे छे के मारो आत्मा निर्मम छे, ममता रहित छे; केमके पोताना
चिदानंद स्वभावथी अन्य कोईपण परभावना स्वामीपणे हुं परिणमतो नथी. हुं तो
पूर्ण ज्ञानदर्शनस्वरूपे ज मारा आत्माने अनुभवुं छुं.