Atmadharma magazine - Ank 318
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९६
खंडवा शहेरमां चार दिवस
मलकापुरमां चार दिवसनो कार्यक्रम आनंदथी पूरो थतां फागण सुद १३ नी
सवारे पू. गुरुदेव खंडवा शहेर पधार्या; उल्लासपूर्वक ठाठमाठथी भव्य स्वागत थयुं.
भव्य जिनालयमां अनेक प्राचीन जिनबिंबो बिराजमान छे; मनोज्ञ जिनबिंबोनां
दर्शन करतां आनंद थाय छे. जिनमंदिरमां दर्शन बाद सामेना विशाळ मंडपमां
स्वागतगीत पछी बे–त्रण हजार श्रोताजनोनी सभामां मंगल–प्रवचनरूपे गुरुदेवे कह्युं
के–
आत्मानो चैतन्यस्वभाव ते सार छे, जगतना तत्त्वोमां शुद्धआत्मा सार छे, ते
ज मंगळरूप छे; तेमां अंतर्मुख थतां हित थाय छे, आनंद थाय छे. जगतना जड
पदार्थोमां अने संसारी अज्ञानी प्राणीओमां साचुं ज्ञान नथी, सुख नथी, तेनी सन्मुख
थईने तेने जाणतां जाणनारने पण साचुं ज्ञान नथी, सुख नथी. आत्मानो जे सहज
स्वभाव छे तेने जाणतां साचुं ज्ञान ने अतीन्द्रिय सुख छे, केमके ते पोते ज्ञान ने
सुखस्वरूप छे. आत्मानो आवो स्वभाव ते सार छे; समयसारनी शरूआतमां तेने
नमस्कार कर्या छे. नमवुं एटले तेमां अंतर्मुख थवुं; तेमां अंतर्मुख थतां जे ज्ञान–
आनंदरूप दशा प्रगटे ते मंगळ छे.
खंडवानो जैनसमाज खूब उत्साही अने वात्सल्यवंत छे. अहींनी चार बहेनो
सोनगढना ब्रह्मचर्याश्रममां रहे छे. सिद्धवरकूटतीर्थ अहींथी मात्र ४० माईल दूर छे.
खंडवा शहेर प्रवचनमां समयसार–कर्ताकर्म अधिकारनी गा. ६९–७० वंचाणी हती. रात्रे
तत्त्वचर्चा पण सरस चालती हती. सम्यक्त्व शुं, चारित्र शुं? वगेरेनुं स्वरूप चर्चायुं
हतुं.
जड–चेतननी भिन्नता, तेमज राग अने ज्ञाननी भिन्नता समजावतां प्रवचनमां
गुरुदेवे कह्युं के–आत्मा पोते चेतनस्वरूप वस्तु छे; ते पोताना चेतनस्वरूपने भूलीने
रागादि परभावनो कर्ता थाय ते अज्ञान छे, ते संसार छे. जडनी क्रिया मारी एम
अज्ञानथी जीव माने छे, पण जडनी क्रियारूपे आत्मा त्रणकाळमां थतो नथी.
चैतन्यमय स्व–वस्तुनी अपेक्षाए राग–पुण्य–पाप ते परवस्तु छे, चैतन्य साथे
तेने एकता नथी. आवुं भेदज्ञान करे त्यारे जीव चेतनभावरूपे ज पोताने अनुभवतो
थको रागादि परभावोने जरापण पोताना करतो नथी, एटले तेने बंधन पण थतुं
नथी. आ रीते भेदज्ञान ते मोक्षनो उपाय छे.